आज का श्लोक,
’विचेतसः’ / ’vicetasaḥ’
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’विचेतसः’ / ’vicetasaḥ’ - व्यर्थ (विसंगत) ज्ञानवाले,
अध्याय 9, श्लोक 12,
मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतसः ।
राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिताः ॥
--
(मोघाशाः मोघकर्माणः मोघज्ञानाः विचेतसः ।
राक्षसीम् आसुरीम् च एव प्रकृतिम् मोहिनीम् श्रिताः ॥
--
भावार्थ :
व्यर्थ (विसंगतिपूर्ण) आशाओं पर, व्यर्थ (विसंगतिपूर्ण) कर्मों को करनेवाले, व्यर्थ (विसंगतिपूर्ण) ज्ञानवाले, विक्षिप्त-चित्त अज्ञानी जन, राक्षसी तथा आसुरी दोनों ही प्रकार की मोहिनी प्रकृति के आश्रित होते हैं ।
--
टिप्पणी :
राक्षसी का अर्थ है रजोगुण की प्रबलता सहित तमोगुण युक्त, आसुरी का अर्थ है तमोगुण की प्रबलता सहित रजोगुणयुक्त,
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’विचेतसः’ / ’vicetasaḥ’ - full of knowledge but lacking wisdom and insight, the deluded,
Chapter 9, śloka 12,
moghāśā moghakarmāṇo
moghajñānā vicetasaḥ |
rākṣasīmāsurīṃ caiva
prakṛtiṃ mohinīṃ śritāḥ ||
--
(moghāśāḥ moghakarmāṇaḥ
moghajñānāḥ vicetasaḥ |
rākṣasīm āsurīm ca eva
prakṛtim mohinīm śritāḥ ||
--
Meaning :
Clinging to and entertaining false, even harmful and contradictory, vain hopes, engaged in useless and contradictory, vain activities, the deluded, and utterly confused have their support in evil (rākṣasī) and demonic (āsurī) both propensities,
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’विचेतसः’ / ’vicetasaḥ’
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’विचेतसः’ / ’vicetasaḥ’ - व्यर्थ (विसंगत) ज्ञानवाले,
अध्याय 9, श्लोक 12,
मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतसः ।
राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिताः ॥
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(मोघाशाः मोघकर्माणः मोघज्ञानाः विचेतसः ।
राक्षसीम् आसुरीम् च एव प्रकृतिम् मोहिनीम् श्रिताः ॥
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भावार्थ :
व्यर्थ (विसंगतिपूर्ण) आशाओं पर, व्यर्थ (विसंगतिपूर्ण) कर्मों को करनेवाले, व्यर्थ (विसंगतिपूर्ण) ज्ञानवाले, विक्षिप्त-चित्त अज्ञानी जन, राक्षसी तथा आसुरी दोनों ही प्रकार की मोहिनी प्रकृति के आश्रित होते हैं ।
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टिप्पणी :
राक्षसी का अर्थ है रजोगुण की प्रबलता सहित तमोगुण युक्त, आसुरी का अर्थ है तमोगुण की प्रबलता सहित रजोगुणयुक्त,
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’विचेतसः’ / ’vicetasaḥ’ - full of knowledge but lacking wisdom and insight, the deluded,
Chapter 9, śloka 12,
moghāśā moghakarmāṇo
moghajñānā vicetasaḥ |
rākṣasīmāsurīṃ caiva
prakṛtiṃ mohinīṃ śritāḥ ||
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(moghāśāḥ moghakarmāṇaḥ
moghajñānāḥ vicetasaḥ |
rākṣasīm āsurīm ca eva
prakṛtim mohinīm śritāḥ ||
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Meaning :
Clinging to and entertaining false, even harmful and contradictory, vain hopes, engaged in useless and contradictory, vain activities, the deluded, and utterly confused have their support in evil (rākṣasī) and demonic (āsurī) both propensities,
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