Wednesday, August 27, 2014

आज का श्लोक, ’विनाशाय’ / ’vināśāya’

आज का श्लोक, ’विनाशाय’ / ’vināśāya’
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विनाशाय’ / ’vināśāya’ - का विनाश करने के लिए,

अध्याय 4, श्लोक 8,

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृतां ।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ॥
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(परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥)
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भावार्थ :
साधु आचरण करनेवाले मनुष्यों का उद्धार करने हेतु, असाधु मनुष्यों / दुष्टों का विनाश करने के लिए, धर्म की भली-भाँति स्थापना करने के लिए मैं सदैव प्रकट रहता हूँ ।
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विनाशाय’ / ’vināśāya’ - to destroy, to annihilate,

Chapter 4, shloka 8,

paritrāṇāya sādhūnāṃ
vināśāya ca duṣkṛtāṃ |
dharmasaṃsthāpanārthāya
saṃbhavāmi yuge yuge ||
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(paritrāṇāya sādhūnām
vināśāya ca duṣkṛtām |
dharmasaṃsthāpanārthāya
sambhavāmi yuge yuge ||)
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To protect the men of noble deeds, to destroy the men of evil deeds, To establish the natural order, dharma, I manifest always, at all times.
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