Sunday, August 31, 2014

आज का श्लोक, ’विचक्षणाः’ / ’vicakṣaṇāḥ’

आज का श्लोक,
’विचक्षणाः’ / ’vicakṣaṇāḥ’
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’विचक्षणाः’ / ’vicakṣaṇāḥ’ - तीक्ष्ण एवं शुद्ध बुद्धिवाले,

अध्याय 18, श्लोक 2,

श्रीभगवानुवाच :

काम्यानां कर्मणां न्यासं सन्न्यासं कवयो विदुः ।
सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणाः
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(काम्यानाम् कर्मणाम् न्यासम् सन्न्यासम्  कवयः विदुः ।
सर्वकर्मफलत्यागम् प्राहुः त्यागम् विचक्षणाः ॥)
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भावार्थ :
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा :
विद्वान् पुरुष कामनाओं की प्राप्ति के उद्देश्य से किए जानेवाले कर्मों का त्याग ही संन्यास है, ऐसा समझते हैं, जबकि (अन्य) विचारपूर्वक देखने-जाननेवालों के मतानुसार समस्त कर्मफल का त्याग ही वस्तुतः त्याग होता है ।
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टिप्पणी :
उपरोक्त श्लोक में संक्षेप में संन्यास को परिभाषित किया गया है । यह जानना रोचक होगा कि इसका शाब्दिक अर्थ व्युत्पत्ति के आधार पर मुख्यतः दो प्रकार से प्राप्त होता है ।
’नि’ उपसर्ग के साथ ’अस्’ धातु (’होने) के अर्थ में संयुक्त करने पर ’न्यस्’ और फिर इससे अपत्यार्थक ’न्यास’ व्युत्पन्न होता है ।
’नि’ उपसर्ग के साथ ’आस्’ धातु (बैठने, स्थिर होने के अर्थ में) से ’न्यास्’ और ’न्यास’ प्राप्त होता है ।
तात्पर्य यह कि एक ओर जहाँ किसी वस्तु को उसके यथोचित स्थान पर रखना ’न्यास’ है, तो दूसरी ओर अपने स्वाभाविक स्वरूप (आत्मा) में मन को स्थिरता से रखना भी ’न्यास’ ही है । इसी को गौण अर्थ में न्यास अर्थात् अंग्रेज़ी भाषा के trust के लिए हिन्दी में प्रयुक्त किया जाता है । यह तो हुआ ’न्यास’ । इसके साथ ’सं’ उपसर्ग लगा देने से इसे पूर्णता प्राप्त हो जाती है और ’संन्यास’ प्राप्त हो जाता है  ।
2.चक्ष् - कहना, देखना, चक्षु - नेत्र, विचक्षण - सावधानी से कहने / देखनेवाला,
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’विचक्षणाः’ / ’vicakṣaṇāḥ’- of sharp and refined intellect,

Chapter 18, śloka 2,

śrībhagavānuvāca :

kāmyānāṃ karmaṇāṃ nyāsaṃ
sannyāsaṃ kavayo viduḥ |
sarvakarmaphalatyāgaṃ
prāhustyāgaṃ vicakṣaṇāḥ ||
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(kāmyānām karmaṇām nyāsaṃ
sannyāsaṃ kavayaḥ viduḥ |
sarvakarmaphalatyāgam
prāhuḥ tyāgaṃ vicakṣaṇāḥ ||)
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Meaning :
śrīkṛṣṇa said :
Learned know, giving up of the actions prompted by the desires of enjoyments is the right kind of Renunciation,  And giving up the fruits of each and every action is termed as tyāgaṃ by the wise, vicakṣaṇāḥ --
Note :
Summarily there is a renunciation of action (karma), and there is another, of the fruits of all action (phalatyāgam ).

2. चक्ष् > cakṣ > to say carefully, to observe,  चक्षु > cakṣu- eye, vicakṣaṇa - one with clear and correct sight / observation.
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