Sunday, August 17, 2014

आज का श्लोक, ’विमूढात्मा’ / ’vimūḍhātmā’

आज का श्लोक, ’विमूढात्मा’ / ’vimūḍhātmā’
_________________________________

’विमूढात्मा’ / ’vimūḍhātmā’ - मूढबुद्धि मनुष्य,

अध्याय 3, श्लोक 6,

कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन् ।
इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते ॥
--
(कर्मेन्द्रियाणि संयम्य यः आस्ते मनसा स्मरन् ।
इन्द्रियार्थान् विमूढात्मा मिथ्याचारः सः उच्यते ॥)
--
भावार्थ :
जो मूढबुद्धि मनुष्य समस्त इन्द्रियों को हठपूर्वक रोककर, उन्हें उनके विषयों से दूर रखते हुए भी, मन से इन्द्रियों के उन विषयों का चिन्तन करता रहता है, वह मिथ्याचारी अर्थात् दम्भी कहा जाता है ।
--
--
’विमूढात्मा’ / ’vimūḍhātmā’ - of poor intellect, confused / deluded mind,

Chapter 3, śloka 6,

karmendriyāṇi saṃyamya
ya āste manasā smaran |
indriyārthānvimūḍhātmā
mithyācāraḥ sa ucyate ||
--
(karmendriyāṇi saṃyamya
yaḥ āste manasā smaran |
indriyārthān vimūḍhātmā 
mithyācāraḥ saḥ ucyate ||)
--
Meaning :
One of poor intellect / weak mind, who outwardly restraining the organs, but keeps on indulging in the the thoughts of the objects and the pleasures that are enjoyed from them, is verily deluded and is a hypocrite.
--


No comments:

Post a Comment