Monday, August 11, 2014

आज का श्लोक, ’विष्टभ्य’ / ’viṣṭabhya’

आज का श्लोक,
’विष्टभ्य’ / ’viṣṭabhya’ 
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’विष्टभ्य’ / ’viṣṭabhya’ -  को व्याप्त करते हुए,

अध्याय 10, श्लोक 42,
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अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन ।
विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत् ॥
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(अथवा बहुना एतेन किम् ज्ञातेन तव अर्जुन ।
विष्टभ्य अहम् इदम् कृत्स्नम् एअकांशेन स्थितः जगत् ॥)
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भावार्थ :
अथवा हे अर्जुन! इसको बहुत विस्तार से जानने से तुम्हें क्या (प्रयोजन? तुम बस इतना ही जान लो कि) यह जो संपूर्ण जगत् जिसमें मैं व्याप्त हुआ हुँ, मेरा एक अंश-मात्र ही है ।
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’विष्टभ्य’ / ’viṣṭabhya’ -pervading and supporting,

Chapter 10, śloka 42,

athavā bahunaitena
kiṃ jñātena tavārjuna |
viṣṭabhyāhamidaṃ kṛtsna-
mekāṃśena sthito jagat ||
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(athavā bahunā etena
kim jñātena tava arjuna |
viṣṭabhya aham idam kṛtsnam
eakāṃśena sthitaḥ jagat ||)
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Meaning :
Or, O arjuna! Knowing all this in great details what profits shall you gain? Just know that with a single fragment of Myself, I pervade and support this entire universe.
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