आज का श्लोक, ’विमूढाः’ / ’vimūḍhāḥ’
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’विमूढाः’ / ’vimūḍhāḥ’ - मूढ-मति है जिनकी, मोहित बुद्धिवाले,
अध्याय 15, श्लोक 10,
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उत्क्रामन्तं स्थितं वापि भुञ्जानं वा गुणान्वितम् ।
विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुषः ॥
(उत्क्रामन्तम् स्थितम् वा अपि भुञ्जानम् वा गुणान्वितम् ।
विमूढाः न अनुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुषः ॥)
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(उस आत्मा को, ) शरीर को छोड़कर जाते हुए, शरीर में अवस्थित रहते हुए, या तीनों गुणों से युक्त होकर विषयों का उपभोग करते हुए भी, अज्ञानग्रस्त मनुष्य जिसे नहीं देख पाते, किन्तु जिनके ज्ञानचक्षु खुले होते हैं वे अवश्य देखते हैं ।
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’विमूढाः’ / ’vimūḍhāḥ’ - of deluded intellect, of confused mind,
Chapter 15, śloka 10,
utkrāmantaṃ sthitaṃ vāpi
bhuñjānaṃ vā guṇānvitam |
vimūḍhā nānupaśyanti
paśyanti jñānacakṣuṣaḥ ||
--
(utkrāmantam sthitam vā api
bhuñjānam vā guṇānvitam |
vimūḍhāḥ na anupaśyanti
paśyanti jñānacakṣuṣaḥ ||)
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Meaning :
Those who are ignorant do not see but those endowed with the eye of wisdom do see, how the soul departs or dwells in the body, or how with the help of the three guṇa-s (attributes of prakṛti) undergoes experiences of senses in relation with their respective objects.
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’विमूढाः’ / ’vimūḍhāḥ’ - मूढ-मति है जिनकी, मोहित बुद्धिवाले,
अध्याय 15, श्लोक 10,
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उत्क्रामन्तं स्थितं वापि भुञ्जानं वा गुणान्वितम् ।
विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुषः ॥
(उत्क्रामन्तम् स्थितम् वा अपि भुञ्जानम् वा गुणान्वितम् ।
विमूढाः न अनुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुषः ॥)
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(उस आत्मा को, ) शरीर को छोड़कर जाते हुए, शरीर में अवस्थित रहते हुए, या तीनों गुणों से युक्त होकर विषयों का उपभोग करते हुए भी, अज्ञानग्रस्त मनुष्य जिसे नहीं देख पाते, किन्तु जिनके ज्ञानचक्षु खुले होते हैं वे अवश्य देखते हैं ।
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’विमूढाः’ / ’vimūḍhāḥ’ - of deluded intellect, of confused mind,
Chapter 15, śloka 10,
utkrāmantaṃ sthitaṃ vāpi
bhuñjānaṃ vā guṇānvitam |
vimūḍhā nānupaśyanti
paśyanti jñānacakṣuṣaḥ ||
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(utkrāmantam sthitam vā api
bhuñjānam vā guṇānvitam |
vimūḍhāḥ na anupaśyanti
paśyanti jñānacakṣuṣaḥ ||)
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Meaning :
Those who are ignorant do not see but those endowed with the eye of wisdom do see, how the soul departs or dwells in the body, or how with the help of the three guṇa-s (attributes of prakṛti) undergoes experiences of senses in relation with their respective objects.
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