Saturday, August 30, 2014

आज का श्लोक, ’विज्ञातुम्’ / ’vijñātum’

आज का श्लोक, ’विज्ञातुम्’ / ’vijñātum’
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’विज्ञातुम्’ / ’vijñātum’ - जानने के लिए, जानने की,

अध्याय 11, श्लोक 31,

आख्यहि मे को भवानुग्ररूपः
नमोऽस्तु ते देववर प्रसीद ।
विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं
न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम् ॥
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(आख्याहि मे को भवान् उग्ररूपः
नमः अस्तु ते देववर प्रसीद ।
विज्ञातुम् इच्छामि भवन्तम् आद्यम्
न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम् ॥)
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भावार्थ :
हे देवाधिदेव! आपको प्रणाम हो,  उग्रस्वरूपवाले यह आप कौन हैं, कृपया मुझसे कहें । आप आद्यपुरुष को ठीक से जानने की मेरी अभिलाषा है, और मैं आपकी प्रवृत्ति से भी अनभिज्ञ हूँ ।
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’विज्ञातुम्’ / ’vijñātum’ - to know about,

Chapter 11, śloka 31,

ākhyahi me ko bhavānugrarūpaḥ
namo:'stu te devavara prasīda |
vijñātumicchāmi bhavantamādyaṃ
na hi prajānāmi tava pravṛttim ||
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(ākhyāhi me ko bhavān ugrarūpaḥ
namaḥ astu te devavara prasīda |
vijñātum icchāmi bhavantam ādyam
na hi prajānāmi tava pravṛttim ||)
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Meaning :
O Lord Supreme! My prostrations to You. Please be kind to me, and say to me, Who are You, O of the Fierce-Face! I wish to know You O Being Prior-most! And I am unable to know Your tendency.
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