Wednesday, August 13, 2014

आज का श्लोक, ’विश्वमूर्ते’ / ’viśvamūrte’

आज का श्लोक,  ’विश्वमूर्ते’ / ’viśvamūrte’
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’विश्वमूर्ते’ / ’viśvamūrte’ - हे विश्वमूर्ति!

अध्याय 11, श्लोक 46,

किरीटिनं गदिनं चक्रहस्त-
मिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव ।
तेनैव रूपेण चतुर्भुजेन
सहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते
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(किरीटिनम् गदिनम् चक्रहस्तम्-
इच्छामि त्वाम् द्रष्टुम् अहम् तथा एव ।
तेन एव रूपेण चतुर्भुजेन
सहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते ॥)
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भावार्थ :
जिनके सिर पर मुकुट है, एक हाथ में गदा तथा दूसरे में चक्र है, मैं आपको आपके उस रूप में देखने का इच्छुक हूँ । (जैसा पहले था) आपके उसी चतुर्भुज स्वरूप के दर्शन का अभिलाषी हूँ मैं, हे सहस्रभुजाओं से युक्त, हे विश्वमूर्ति ! आप मुझे उसी रूप में दर्शन दीजिए !
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’विश्वमूर्ते’ / ’viśvamūrte’ - O The form of the whole universe! 

Chapter 11, śloka 46,

kirīṭinaṃ gadinaṃ cakrahasta-
micchāmi tvāṃ draṣṭumahaṃ tathaiva |
tenaiva rūpeṇa caturbhujena 
sahasrabāho bhava viśvamūrte ||
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(kirīṭinam gadinam cakrahastam-
icchāmi tvām draṣṭum aham tathā eva |
tena eva rūpeṇa caturbhujena
sahasrabāho bhava viśvamūrte ||)
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Meaning :
I wish to see your form that is wearing a crown, armed with a club (gada) and a discus (cakra) in hand as before. Take up Your that very four-armed form again, I pray to You, (sahasrabāho) O thousand-armed One!! (viśvamūrte) O One with all the forms! 
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