Sunday, August 31, 2014

आज का श्लोक, ’विगुणः’ / ’viguṇaḥ’

आज का श्लोक, ’विगुणः’ / ’viguṇaḥ’
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’विगुणः’ / ’viguṇaḥ’ - अल्प या विपरीत गुणयुक्त, हीन,

अध्याय 3, श्लोक 35,
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श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् ।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ॥
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(श्रेयान्-स्वधर्मः विगुणः परधर्मात्-स्वनुष्ठितात् ।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मः भयावहः ॥
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भावार्थ :
अच्छी प्रकार से  आचरण में लाये हुए दूसरे के धर्म से, अपने अल्प या विपरीत गुणवाले धर्म का आचरण उत्तम है, क्योंकि जहाँ एक ओर अपने धर्म का आचरण करते हुए मृत्यु को प्राप्त हो जाना भी कल्याणप्रद होता है, वहीं दूसरे के धर्म का आचरण भय का ही कारण होता है ।
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अध्याय 18, श्लोक 47,
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श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् ।
स्वभावनियतं कर्म कुर्वन्नाप्नोति  किल्बिषम् ॥
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(श्रेयान् स्वधर्मः विगुणः परधर्मात् सु-अनुष्ठितात् ।
स्वभावनियतम् कर्म कुर्वन् न आप्नोति किल्बिषम् ॥)
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भावार्थ :
अच्छी प्रकार से आचरण किए गए दूसरे के धर्म की तुलना में अपना स्वाभाविक धर्म, अल्पगुणयुक्त होने पर भी श्रेष्ठ है, क्योंकि अपने स्वधर्मरूप कर्म का भली प्रकार से आचरण करते हुए मनुष्य पाप को प्राप्त नहीं होता ।
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’विगुणः’ / ’viguṇaḥ’ -   inferior, or of opposite quality,

Chapter 3, śloka 35,

śreyānsvadharmo viguṇaḥ 
paradharmātsvanuṣṭhitāt |
svadharme nidhanaṃ śreyaḥ
paradharmo bhayāvahaḥ ||
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(śreyān-svadharmaḥ viguṇaḥ 
paradharmāt-svanuṣṭhitāt |
svadharme nidhanaṃ śreyaḥ
paradharmaḥ  bhayāvahaḥ ||
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Meaning :
Though has not merits, it is far better to follow one's own way of 'dharma', than to follow and act upon the duties of another's 'dharma'. Even the death while pursuing own 'dharma', results in the ultimate good, where-as practicing another's 'dharma' is just horrific.
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Chapter 18, śloka 47,

śreyānsvadharmo viguṇaḥ 
paradharmātsvanuṣṭhitāt |
svabhāvaniyataṃ karma
kurvannāpnoti  kilbiṣam ||
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(śreyān svadharmaḥ viguṇaḥ 
paradharmāt su-anuṣṭhitāt |
svabhāvaniyatam karma
kurvan na āpnoti kilbiṣam ||)
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Meaning :
Though inferior, one should observe and follow the way of action / activity as is fit with his natural tendencies and is supposed to carry out according to scriptural injunctions. Because one is already fit for that kind of Action and such a man never incurs sin if he truthfully performs the same.
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