आज का श्लोक, ’विषादम्’ / ’viṣādam’
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’विषादम्’ / ’viṣādam’ - विषाद, खिन्नता, अवसाद,
अध्याय 18, श्लोक 35,
यया स्वप्नं भयं शोकं विषादं मदमेव च ।
न विमुञ्चति दुर्मेधा धृतिः सा पार्थ तामसी ॥
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(यया स्वप्नम् भयम् शोकम् विषादम् मदम् एव च ।
न विमुञ्चति दुर्मेधा धृतिः सा पार्थ तामसी ॥)
--
भावार्थ :
जिस धृति से दुष्ट बुद्धिवाला मनुष्य निद्रा, भय, शोक, विषाद तथा उन्मत्तता को भी नहीं छोड़ता, अर्थात् धारण किए रहता है, उस धृति (मन का सात्त्विक, राजसिक अथवा तामसिक वृत्तियों से तादात्म्य में रहने का गुण) को तामसी धृति कहा गया है ।
टिप्पणी :
श्लोक 29 में ऐसा कहा गया कि गुण के अनुसार / आधार पर बुद्धि तथा धृति भी तीन प्रकार से सात्त्विक, राजसिक तथा तामसिक होती है ।
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’विषादम्’ / ’viṣādam’ - melancholy, derangement,
Chapter 18, śloka 35,
yayā svapnaṃ bhayaṃ śokaṃ
viṣādaṃ madameva ca |
na vimuñcati durmedhā
dhṛtiḥ sā pārtha tāmasī ||
--
(yayā svapnam bhayam śokam
viṣādam madam eva ca |
na vimuñcati durmedhā
dhṛtiḥ sā pārtha tāmasī ||)
--
Meaning :
The tendency (dhṛti) of mind that does not let one of evil attitudes overcome sleep, fear, grief, misery, sorrow, and arrogance also, is known as of the tāmasī kind.
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Note :
As already said in śloka 29 of this chapter, the intellect (buddhi) and tendency (dhṛti) is also of three kinds, namely sāttvika, rājasika and tāmasī kinds. It should be also noted that dhṛti is the attribute of the mind through which the mind gets identified with various modes (vṛtti-s) of mind, and again the modes are also of these 3 kinds i.e. sāttvika, rājasika and tāmasī.
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’विषादम्’ / ’viṣādam’ - विषाद, खिन्नता, अवसाद,
अध्याय 18, श्लोक 35,
यया स्वप्नं भयं शोकं विषादं मदमेव च ।
न विमुञ्चति दुर्मेधा धृतिः सा पार्थ तामसी ॥
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(यया स्वप्नम् भयम् शोकम् विषादम् मदम् एव च ।
न विमुञ्चति दुर्मेधा धृतिः सा पार्थ तामसी ॥)
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भावार्थ :
जिस धृति से दुष्ट बुद्धिवाला मनुष्य निद्रा, भय, शोक, विषाद तथा उन्मत्तता को भी नहीं छोड़ता, अर्थात् धारण किए रहता है, उस धृति (मन का सात्त्विक, राजसिक अथवा तामसिक वृत्तियों से तादात्म्य में रहने का गुण) को तामसी धृति कहा गया है ।
टिप्पणी :
श्लोक 29 में ऐसा कहा गया कि गुण के अनुसार / आधार पर बुद्धि तथा धृति भी तीन प्रकार से सात्त्विक, राजसिक तथा तामसिक होती है ।
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’विषादम्’ / ’viṣādam’ - melancholy, derangement,
Chapter 18, śloka 35,
yayā svapnaṃ bhayaṃ śokaṃ
viṣādaṃ madameva ca |
na vimuñcati durmedhā
dhṛtiḥ sā pārtha tāmasī ||
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(yayā svapnam bhayam śokam
viṣādam madam eva ca |
na vimuñcati durmedhā
dhṛtiḥ sā pārtha tāmasī ||)
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Meaning :
The tendency (dhṛti) of mind that does not let one of evil attitudes overcome sleep, fear, grief, misery, sorrow, and arrogance also, is known as of the tāmasī kind.
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Note :
As already said in śloka 29 of this chapter, the intellect (buddhi) and tendency (dhṛti) is also of three kinds, namely sāttvika, rājasika and tāmasī kinds. It should be also noted that dhṛti is the attribute of the mind through which the mind gets identified with various modes (vṛtti-s) of mind, and again the modes are also of these 3 kinds i.e. sāttvika, rājasika and tāmasī.
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