Monday, August 11, 2014

आज का श्लोक, ’विस्तरस्य’ / ’vistarasya’

आज का श्लोक, ’विस्तरस्य’ / ’vistarasya’
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’विस्तरस्य’ / ’vistarasya’ - विस्तार का,
 
अध्याय 10, श्लोक 19,

हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्म विभूतयः ।
प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे ॥
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(हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या: हि आत्म-विभूतयः ।
प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ न अस्ति अन्तः विस्तरस्य मे ॥ )

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भावार्थ :
हे कुरुवंश में श्रेष्ठ अर्जुन! अब मैं तुमसे देवलोक में स्थित मेरी विभूतियों में से कुछ का प्रधानता से वर्णन करूँगा, क्योंकि मेरे विस्तार का अंत नहीं है।
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’विस्तरस्य’ / ’vistarasya’ - of the magnitude, vastness,

Chapter 10, śloka 19,

hanta te kathayiṣyāmi
divyā hyātma vibhūtayaḥ |
prādhānyataḥ kuruśreṣṭha
nāstyanto vistarasya me ||
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(hanta te kathayiṣyāmi
divyā: hi ātma-vibhūtayaḥ |
prādhānyataḥ kuruśreṣṭha
na asti antaḥ vistarasya me || )
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Meaning :
Now, O kuruśreṣṭha (arjuna)!  I will tell you summarily about a few most important and prominent aspects of My Divine Reality, because there is no end to the Magnitude of My Glory and the aspects that are there in Me.
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