Thursday, August 28, 2014

आज का श्लोक, ’विनङ्क्ष्यसि’ / ’vinaṅkṣyasi’

आज का श्लोक,
’विनङ्क्ष्यसि’ / ’vinaṅkṣyasi’ 
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’विनङ्क्ष्यसि’ / ’vinaṅkṣyasi’ - नष्ट हो जाओगे,

अध्याय 18, श्लोक 58,

मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि ।
अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि
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(मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात् तरिष्यसि ।
अथ चेत् त्वम् अहङ्कारात् न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि ॥)
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भावार्थ :
मुझमें चित्त संलग्न कर तुम मेरी कृपा से समस्त बाधाओं को पार कर लोगे । और यदि अहंकारवश मेरी बात नहीं सुनोगे तो विनष्ट हो जाओगे ।
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’विनङ्क्ष्यसि’ / ’vinaṅkṣyasi’ - (you) shall be destroyed,

Chapter 18, śloka 58,
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maccittaḥ sarvadurgāṇi 
matprasādāttariṣyasi |
atha cettvamahaṅkārān-
na śroṣyasi vinaṅkṣyasi ||
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(maccittaḥ sarvadurgāṇi 
matprasādāt tariṣyasi |
atha cet tvam ahaṅkārāt 
na śroṣyasi vinaṅkṣyasi ||)
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Meaning :
If you listen to my advice with keen attention and devotion to Me, you shall conquer over all obstacles and troubles. And if because of your haughtiness you disregard Me, and don't listen to Me, you shall be just destroyed.
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