आज का श्लोक, ’विषमे’ / ’viṣame’
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’विषमे’ / ’viṣame’ - कठिन समय में,
अध्याय 2, श्लोक 2,
श्रीभगवानुवाच -
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् ।
अनार्यहुश्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ॥
--
(कुतः त्वा कश्मलम् इदम् विषमे समुपस्थितम् ।
अनार्यजुष्टम् अस्वर्ग्यम् अकीर्तिकरम् अर्जुन ॥)
--
भावार्थ :
भगवान् श्रीकृष्ण बोले :
हे अर्जुन! इस कठिन समय और स्थान पर तुम्हारे चित्त में यह मोहबुद्धि जो कहाँ से / कैसे उठी, जो न तो श्रेष्ठ पुरुषों के लिए आचरण किए जाने योग्य है, न स्वर्ग को देनेवाली है, और न उत्तम कीर्ति का ही हेतु है ?
--
’विषमे’ / ’viṣame’ - hard, difficult, troublesome,
Chapter 2, śloka 2,
śrībhagavānuvāca -
kutastvā kaśmalamidaṃ
viṣame samupasthitam |
anāryahuśṭamasvargya
makīrtikaramarjuna ||
--
(kutaḥ tvā kaśmalam idam
viṣame samupasthitam |
anāryajuṣṭam asvargyam
akīrtikaram arjuna ||)
--
Meaning :
bhagavān śrīkṛṣṇa said :
O arjuna! Where-from came this attachment to you, at this hour of peril? It is not fitting to the noble, it will yield you neither the heaven nor the glory.
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’विषमे’ / ’viṣame’ - कठिन समय में,
अध्याय 2, श्लोक 2,
श्रीभगवानुवाच -
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् ।
अनार्यहुश्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ॥
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(कुतः त्वा कश्मलम् इदम् विषमे समुपस्थितम् ।
अनार्यजुष्टम् अस्वर्ग्यम् अकीर्तिकरम् अर्जुन ॥)
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भावार्थ :
भगवान् श्रीकृष्ण बोले :
हे अर्जुन! इस कठिन समय और स्थान पर तुम्हारे चित्त में यह मोहबुद्धि जो कहाँ से / कैसे उठी, जो न तो श्रेष्ठ पुरुषों के लिए आचरण किए जाने योग्य है, न स्वर्ग को देनेवाली है, और न उत्तम कीर्ति का ही हेतु है ?
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’विषमे’ / ’viṣame’ - hard, difficult, troublesome,
Chapter 2, śloka 2,
śrībhagavānuvāca -
kutastvā kaśmalamidaṃ
viṣame samupasthitam |
anāryahuśṭamasvargya
makīrtikaramarjuna ||
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(kutaḥ tvā kaśmalam idam
viṣame samupasthitam |
anāryajuṣṭam asvargyam
akīrtikaram arjuna ||)
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Meaning :
bhagavān śrīkṛṣṇa said :
O arjuna! Where-from came this attachment to you, at this hour of peril? It is not fitting to the noble, it will yield you neither the heaven nor the glory.
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