आज का श्लोक,
’विपरिवर्तते’ / ’viparivartate’
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’विपरिवर्तते’ / ’viparivartate’ - परिवर्तनों से गुज़रता (हुआ प्रतीत होता) है,
अध्याय 9, श्लोक 10,
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मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम् ।
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ॥
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(मया अध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते स-चराचरम् ।
हेतुना-अनेन कौन्तेय जगत् विपरिवर्तते ॥)
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भावार्थ :
मेरे ही पूर्ण नियंत्रण में प्रकृति चर-अचर जगत् को जन्म देती है । इन हेतुओं से, इन कारणों, उद्देश्यों, प्रयोजनों आदि से, जगत् सतत् परिवर्तनों से गुज़रता हुआ प्रतीत होता रहता है ।
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’विपरिवर्तते’ / ’viparivartate’
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’विपरिवर्तते’ / ’viparivartate’ - परिवर्तनों से गुज़रता (हुआ प्रतीत होता) है,
अध्याय 9, श्लोक 10,
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मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम् ।
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ॥
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(मया अध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते स-चराचरम् ।
हेतुना-अनेन कौन्तेय जगत् विपरिवर्तते ॥)
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भावार्थ :
मेरे ही पूर्ण नियंत्रण में प्रकृति चर-अचर जगत् को जन्म देती है । इन हेतुओं से, इन कारणों, उद्देश्यों, प्रयोजनों आदि से, जगत् सतत् परिवर्तनों से गुज़रता हुआ प्रतीत होता रहता है ।
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’विपरिवर्तते’ / ’viparivartate’ - undergoes mutation / transformation,
Chapter 9, śloka 10,
mayādhyakṣeṇa prakṛtiḥ
sūyate sacarācaram |
hetunānena kaunteya
jagadviparivartate ||
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(mayā adhyakṣeṇa prakṛtiḥ
sūyate sa-carācaram |
hetunā-anena kaunteya
jagat viparivartate ||)
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Meaning :
Under My Authority, prakṛti (The nature with its three attributes) manifests / gives birth to all animate and inanimate beings. And because of this reason only, world is in a state of continuous change.
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