Wednesday, August 13, 2014

आज का श्लोक, 'विश्वतोमुखः' / 'viśvatomukhaḥ'

आज का श्लोक, 'विश्वतोमुखः' / 'viśvatomukhaḥ'
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'विश्वतोमुखः' / 'viśvatomukhaḥ' - हर दिशा की ओर मुख (ध्यान) है जिसका,

अध्याय 10, श्लोक 33,

अक्षराणामकारोऽस्मि द्वन्द्वः सामासिकस्य च ।
अहमेवाक्षयः कालो धाताहं विश्वतोमुखः
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(अक्षराणाम् अकारः अस्मि द्वन्द्वः सामासिकस्य च ।
अहम् एव अक्षयः कालः धाता अहम् विश्वतोमुखः ॥)
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भावार्थ :
वर्णाक्षरों में ’अ’-कार हूँ, सामासिकों / वैयाकरणों में द्वन्द्व । मैं ही अनन्त विस्तारवाला काल, और सब ओर मुख वाला सर्वतोमुखी सबको धारण करनेवाला, आश्रय ।
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'विश्वतोमुखः' / 'viśvatomukhaḥ' - One facing all the directions (literally, having all directions in the sight / attention)

Chapter 10, śloka 33,

akṣarāṇāmakāro:'smi
dvandvaḥ sāmāsikasya ca |
ahamevākṣayaḥ kālo
dhātāhaṃ viśvatomukhaḥ ||
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(akṣarāṇām akāraḥ asmi
dvandvaḥ sāmāsikasya ca |
aham eva akṣayaḥ kālaḥ
dhātā aham viśvatomukhaḥ ||)
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Meaning :
Of letters in alphabets, I AM the letter 'A' (’a’-kāra). Of grammarians, I AM the binary-dual-compound-word (dvandva-samāsa). I AM again the Time, the eternity, I AM the reservoir that holds and protects the entire universe, That faces all directions ('viśvatomukhaḥ').
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