आज का श्लोक, ’विज्ञाय’ / ’vijñāya’
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’विज्ञाय’ / ’vijñāya’ - ध्यानपूर्वक समझकर,
अध्याय 13, श्लोक 18,
इति क्षेत्रं तथा ज्ञानं ज्ञेयं चोक्तं समासतः ।
मद्भक्त एतद्विज्ञाय मद्भावायोपपद्यते ॥
--
(इति क्षेत्रम् तथा ज्ञानम् ज्ञेयम् च उक्तम् समासतः ।
मद्भक्तः एतत् विज्ञाय मद्भावाय उपपद्यते ॥)
--
भावार्थ :
(इस अध्याय 13 के श्लोक 1, 2 में भूमिका, संज्ञा (परिभाषाएँ) 3, 4 में उन पदों (शब्दों का तात्पर्य) और 5, 6 में ’क्षेत्र’ एवं ’क्षेत्रज्ञ’, का स्वरूप, 7 से 11 तक ’ज्ञान’ तथा 'ज्ञान’ का साधन, 12 से 17 तक ’ज्ञेय’ के स्वरूप का वर्णन, बतलाया गया । इसके पश्चात् भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं :)
समासतः (संक्षेप में, सारतः), इस प्रकार से क्षेत्र एवं ’क्षेत्रज्ञ’, तथा ज्ञान एवं ज्ञेय कहा । इसे ठीक से ग्रहणकर मेरा भक्त मेरी ही अवस्थिति (तत्व) को प्राप्त होता है ।
--
’विज्ञाय’ / ’vijñāya’ - having correctly understood with due attention,
Chapter 13, śloka 18,
iti kṣetraṃ tathā jñānaṃ
jñeyaṃ coktaṃ samāsataḥ |
madbhakta etadvijñāya
madbhāvāyopapadyate ||
--
(iti kṣetram tathā jñānam
jñeyam ca uktam samāsataḥ |
madbhaktaḥ etat vijñāya
madfbhāvāya upapadyate ||)
--
Meaning :
(In this Chapter 13, - the terminolgy ( kṣetra, ’kṣetrajña’, jñāna jñeya) and the introduction was presented in śloka 1 and 2, in 3 and 4 the same has bean elucidated, in 5 and 6 the nature and functioning of the body (gross / sthūla, subtle / sūkṣma, and causal / kāraṇa) and the witnessing- consciousness / sākṣī-cetanā, supporting them has bean dealt with. Then Lord śrīkṛṣṇa says :)
This has been dealt with in nutshell, knowing this correctly, My devotee attains The Reality That I AM, -The principle That I AM. The truth : 'I AM THAT' / aham brahmāsmi.
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’विज्ञाय’ / ’vijñāya’ - ध्यानपूर्वक समझकर,
अध्याय 13, श्लोक 18,
इति क्षेत्रं तथा ज्ञानं ज्ञेयं चोक्तं समासतः ।
मद्भक्त एतद्विज्ञाय मद्भावायोपपद्यते ॥
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(इति क्षेत्रम् तथा ज्ञानम् ज्ञेयम् च उक्तम् समासतः ।
मद्भक्तः एतत् विज्ञाय मद्भावाय उपपद्यते ॥)
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भावार्थ :
(इस अध्याय 13 के श्लोक 1, 2 में भूमिका, संज्ञा (परिभाषाएँ) 3, 4 में उन पदों (शब्दों का तात्पर्य) और 5, 6 में ’क्षेत्र’ एवं ’क्षेत्रज्ञ’, का स्वरूप, 7 से 11 तक ’ज्ञान’ तथा 'ज्ञान’ का साधन, 12 से 17 तक ’ज्ञेय’ के स्वरूप का वर्णन, बतलाया गया । इसके पश्चात् भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं :)
समासतः (संक्षेप में, सारतः), इस प्रकार से क्षेत्र एवं ’क्षेत्रज्ञ’, तथा ज्ञान एवं ज्ञेय कहा । इसे ठीक से ग्रहणकर मेरा भक्त मेरी ही अवस्थिति (तत्व) को प्राप्त होता है ।
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’विज्ञाय’ / ’vijñāya’ - having correctly understood with due attention,
Chapter 13, śloka 18,
iti kṣetraṃ tathā jñānaṃ
jñeyaṃ coktaṃ samāsataḥ |
madbhakta etadvijñāya
madbhāvāyopapadyate ||
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(iti kṣetram tathā jñānam
jñeyam ca uktam samāsataḥ |
madbhaktaḥ etat vijñāya
madfbhāvāya upapadyate ||)
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Meaning :
(In this Chapter 13, - the terminolgy ( kṣetra, ’kṣetrajña’, jñāna jñeya) and the introduction was presented in śloka 1 and 2, in 3 and 4 the same has bean elucidated, in 5 and 6 the nature and functioning of the body (gross / sthūla, subtle / sūkṣma, and causal / kāraṇa) and the witnessing- consciousness / sākṣī-cetanā, supporting them has bean dealt with. Then Lord śrīkṛṣṇa says :)
This has been dealt with in nutshell, knowing this correctly, My devotee attains The Reality That I AM, -The principle That I AM. The truth : 'I AM THAT' / aham brahmāsmi.
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