Sunday, July 13, 2014

आज का श्लोक, ’सदृशः’ / ’sadṛśaḥ’

आज का श्लोक, ’सदृशः’ / ’sadṛśaḥ’
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’सदृशः’ / ’sadṛśaḥ’ - समान, बराबरी का, तुल्य,

अध्याय 16, श्लोक 15,

आढ्योऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया ।
यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिताः ॥
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(आढ्यः अभिजनवान् अस्मि कः अन्यः अस्ति सदृशः मया ।
यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्ये इति अज्ञानविमोहिताः ॥)
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भावार्थ :
(आसुरी प्रकृति से युक्त मनुष्य ...:)
धन-संपत्तिवान, बड़े परिवार वाला हूँ, मेरे जैसा कोई और कहाँ है? यज्ञ करूँगा, दान दूँगा, और आमोद-प्रमोद करूँगा, इस प्रकार की अज्ञानबुद्धि से विमोहित रहते हैं ।
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’सदृशः’ / ’sadṛśaḥ’ - like, equal, in comparison to,

Chapter 16, śloka 15,

āḍhyo:'bhijanavānasmi
ko:'nyo:'sti sadṛśo mayā |
yakṣye dāsyāmi modiṣya
ityajñānavimohitāḥ ||
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(āḍhyaḥ abhijanavān asmi
kaḥ anyaḥ asti sadṛśaḥ mayā |
yakṣye dāsyāmi modiṣye
iti ajñānavimohitāḥ ||)
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Meaning :
(The men of evil tendencies, (āsurī prakṛti) ...)
I am rich, and have a high social status, who else is above me? I shall perform rituals (that give prosperity and powers), I shall donate, and rejoice and revel, and are obsessed with such fantacies..
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