Monday, July 7, 2014

आज का श्लोक, ’समदुःखसुखः’ / ’samaduḥkhasukhaḥ’

आज का श्लोक,
’समदुःखसुखः’ /  ’samaduḥkhasukhaḥ’ 
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’समदुःखसुखः’ /  ’samaduḥkhasukhaḥ’ - सुख और दुःख को समान दृष्टि से ग्रहण करनेवाला,

अध्याय 12, श्लोक 13,

अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च ।
निर्ममो निरहङ्कारः समसुखदुःखः क्षमी ॥
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(अद्वेष्टा सर्वभूतानाम् मैत्रः करुणः एव च ।
निर्ममः निरहङ्कारः समसुखदुःखः क्षमी ॥)
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भावार्थ :
सभी प्राणियों के प्रति द्वेषबुद्धि से सर्वथा रहित, मैत्री की भावना से युक्त और करुणाशील ही, ममत्व की भावना से रहित, अहंकार (गर्व) से रहित, तथा सुख अथवा दुःख में समान, और (सभी के प्रति) क्षमाशील ।
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अध्याय 14, श्लोक 24,

समदुःखसुखः स्वस्थः समलोष्टाश्मकाञ्चनः ।
तुल्यप्रियाप्रियो धीरस्तुल्यनिन्दात्मसंस्तुतिः ॥
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(समदुःखसुखः स्वस्थः समलोष्टाश्मकाञ्चनः ।
तुल्यप्रियाप्रियः धीरः तुल्यनिन्दात्मसंस्तुतिः ॥)
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भावार्थ :
दुःख तथा सुख को समान समझनेवाला, निरन्तर आत्मभाव (स्वभाव) में अवस्थित, मिट्टी, पत्थर तथा सुवर्ण में समान दृष्टि रखनेवाला, प्रिय और अप्रिय में एक समान, ऐसा ज्ञानी, जो कि निन्दा और प्रशंसा के प्रति भी वैसा ही तटस्थ होता है , ...
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’समदुःखसुखः’ /  ’samaduḥkhasukhaḥ’ - accepting pleasure or pain with the same attitude,

Chapter 12, śloka 13,

adveṣṭā sarvabhūtānāṃ
maitraḥ karuṇa eva ca |
nirmamo nirahaṅkāraḥ
samasukhaduḥkhaḥ kṣamī ||
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(adveṣṭā sarvabhūtānām
maitraḥ karuṇaḥ eva ca |
nirmamaḥ nirahaṅkāraḥ
samasukhaduḥkhaḥ kṣamī ||)
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Meaning :
One, free from malice, friendly and compassionate towards all, free from the sense of possessiveness, egoistic-pride, accepts pleasures and pain in the same vein, and forgiving to all,

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Chapter 14, śloka 24,

samaduḥkhasukhaḥ svasthaḥ
samaloṣṭāśmakāñcanaḥ |
tulyapriyāpriyo dhīras-
tulyanindātmasaṃstutiḥ ||
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(samaduḥkhasukhaḥ svasthaḥ
samaloṣṭāśmakāñcanaḥ |
tulyapriyāpriyaḥ dhīraḥ
tulyanindātmasaṃstutiḥ ||)
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Meaning :
Accepting pain and pleasure with the same attitude, abiding firmly in the Self, looking at a clod of earth, a stone, and gold in the same manner, and treating a dear one or an enemy alike, for such a man of wisdom (jñānī),  praise and disdain are the same.
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