आज का श्लोक, ’शरणम्’ / ’śaraṇam’
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’शरणम्’ / ’śaraṇam’ - आश्रय, सहारा,
अध्याय 2, श्लोक 49,
दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय ।
बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणा फलहेतवः ॥
--
(दूरेण हि अवरं कर्म बुद्धियोगात् धनञ्जय ।
बुद्धौ शरणम् अन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः ॥)
--
भावार्थ :
(निश्चय ही बुद्धिरहित) कर्म बुद्धियोग-सहित कर्म की अपेक्षा निकृष्ट है । इसलिए तुम बुद्धि का ही आश्रय लेने का यत्न करो । फल की कामना से प्रवृत्त होकर जो (बिना बुद्धियोग का आश्रय लिए) कर्म का हेतु बनते हैं वे दीन / दया के पात्र हैं ।
--
अध्याय 9, श्लोक 18,
गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत् ।
प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमव्ययम् ॥
--
(गतिः भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणम् सुहृत् ।
प्रभवः प्रलयः स्थानम् निधानम् बीजम् अव्ययम् ॥)
--
भावार्थ :
सभी का परम गंतव्य, पालनहारा, स्वामी, सबमें साक्षी की तरह विद्यमान, सबका वास्तव्य, शरण, और सुहृद्, सबके उद्भव तथा लय का हेतु, सब का आधार, निधान, (जिसे त्यागा न जा सके) और कारण, अव्यय ।
--
अध्याय 18, श्लोक 62,
--
तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत ।
तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम् ॥
--
(तम् एव शरणम् गच्छ सर्वभावेन भारत ।
तत्-प्रसादात् पराम् शान्तिम् स्थानम् प्राप्स्यसि शाश्वतम् ॥)
--
भावार्थ :
हे भारत (अर्जुन)! अपने सम्पूर्ण हृदय से उस परमेश्वर की ही शरण में जाओ । उसकी कृपा से तुम्हें शान्ति तथा सनातन परम धाम प्राप्त होगा ।
--
अध्याय 18, श्लोक 66,
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
--
(सर्वधर्मान् परित्यज्य माम् एकम् शरणम् व्रज ।
अहम् त्वा सर्वपापेभ्यः मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥)
--
भावार्थ :
सम्पूर्ण धर्मों अर्थात् मन के प्रवृत्तिरूपी भिन्न-भिन्न धर्मों को / मानसिक ऊहापोह को त्यागकर मुझ एक परमात्मा की शरण में आओ । मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, शोक मत करो ।
--
’शरणम्’ / ’śaraṇam’ - refuge, shelter, support,
Chapter , śloka 49,
dūreṇa hyavaraṃ karma
buddhiyogāddhanañjaya |
buddhau śaraṇamanviccha
kṛpaṇā phalahetavaḥ ||
--
(dūreṇa hi avaraṃ karma
buddhiyogāt dhanañjaya |
buddhau śaraṇam anviccha
kṛpaṇāḥ phalahetavaḥ ||)
--
Meaning :
Action without understanding (buddhirahita) the principle, is no doubt inferior to action with proper understanding (buddhiyoga-sahita) of the principle. Therefore hold onto the understanding (buddhiyoga / yoga of Intelligence). Those who driven by (desiring the) fruit of action become the instrument of the action and are pitiable, for they invite misery only.
--
Chapter 9, śloka 18,
gatirbhartā prabhuḥ sākṣī
nivāsaḥ śaraṇaṃ suhṛt |
prabhavaḥ pralayaḥ sthānaṃ
nidhānaṃ bījamavyayam ||
--
(gatiḥ bhartā prabhuḥ sākṣī
nivāsaḥ śaraṇam suhṛt |
prabhavaḥ pralayaḥ sthānam
nidhānam bījam avyayam ||)
--
Meaning :
(I AM) the destination, the protector and savior, the Lord, the witness, the abode, the shelter, the very heart / the Friend and Beloved, I AM the origin, evolution and the dissolution, The Ultimate, the imperishable seed and the only refuge.
--
Chapter 18, śloka 62,
tameva śaraṇaṃ gaccha
sarvabhāvena bhārata |
tatprasādātparāṃ śāntiṃ
sthānaṃ prāpsyasi śāśvatam ||
--
(tam eva śaraṇam gaccha
sarvabhāvena bhārata |
tat-prasādāt parām śāntim
sthānam prāpsyasi śāśvatam ||)
--
Meaning :
Therefore, with all your heart, seek shelter in Him alone. Through His grace, you shall attain the abode that is bliss supreme and peace eternal.
--
Chapter 18, śloka 66,
sarvadharmānparityajya
māmekaṃ śaraṇaṃ vraja |
ahaṃ tvā sarvapāpebhyo
mokṣayiṣyāmi mā śucaḥ ||
--
(sarvadharmān parityajya
mām ekam śaraṇam vraja |
aham tvā sarvapāpebhyaḥ
mokṣayiṣyāmi mā śucaḥ ||)
--
Meaning :
Put aside all the different tendencies of mind (vṛtti-s), come to Me, take shelter in Me. I shall liberate you from all sin, Grieve not.
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’शरणम्’ / ’śaraṇam’ - आश्रय, सहारा,
अध्याय 2, श्लोक 49,
दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय ।
बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणा फलहेतवः ॥
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(दूरेण हि अवरं कर्म बुद्धियोगात् धनञ्जय ।
बुद्धौ शरणम् अन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः ॥)
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भावार्थ :
(निश्चय ही बुद्धिरहित) कर्म बुद्धियोग-सहित कर्म की अपेक्षा निकृष्ट है । इसलिए तुम बुद्धि का ही आश्रय लेने का यत्न करो । फल की कामना से प्रवृत्त होकर जो (बिना बुद्धियोग का आश्रय लिए) कर्म का हेतु बनते हैं वे दीन / दया के पात्र हैं ।
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अध्याय 9, श्लोक 18,
गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत् ।
प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमव्ययम् ॥
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(गतिः भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणम् सुहृत् ।
प्रभवः प्रलयः स्थानम् निधानम् बीजम् अव्ययम् ॥)
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भावार्थ :
सभी का परम गंतव्य, पालनहारा, स्वामी, सबमें साक्षी की तरह विद्यमान, सबका वास्तव्य, शरण, और सुहृद्, सबके उद्भव तथा लय का हेतु, सब का आधार, निधान, (जिसे त्यागा न जा सके) और कारण, अव्यय ।
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अध्याय 18, श्लोक 62,
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तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत ।
तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम् ॥
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(तम् एव शरणम् गच्छ सर्वभावेन भारत ।
तत्-प्रसादात् पराम् शान्तिम् स्थानम् प्राप्स्यसि शाश्वतम् ॥)
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भावार्थ :
हे भारत (अर्जुन)! अपने सम्पूर्ण हृदय से उस परमेश्वर की ही शरण में जाओ । उसकी कृपा से तुम्हें शान्ति तथा सनातन परम धाम प्राप्त होगा ।
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अध्याय 18, श्लोक 66,
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
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(सर्वधर्मान् परित्यज्य माम् एकम् शरणम् व्रज ।
अहम् त्वा सर्वपापेभ्यः मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥)
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भावार्थ :
सम्पूर्ण धर्मों अर्थात् मन के प्रवृत्तिरूपी भिन्न-भिन्न धर्मों को / मानसिक ऊहापोह को त्यागकर मुझ एक परमात्मा की शरण में आओ । मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, शोक मत करो ।
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’शरणम्’ / ’śaraṇam’ - refuge, shelter, support,
Chapter , śloka 49,
dūreṇa hyavaraṃ karma
buddhiyogāddhanañjaya |
buddhau śaraṇamanviccha
kṛpaṇā phalahetavaḥ ||
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(dūreṇa hi avaraṃ karma
buddhiyogāt dhanañjaya |
buddhau śaraṇam anviccha
kṛpaṇāḥ phalahetavaḥ ||)
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Meaning :
Action without understanding (buddhirahita) the principle, is no doubt inferior to action with proper understanding (buddhiyoga-sahita) of the principle. Therefore hold onto the understanding (buddhiyoga / yoga of Intelligence). Those who driven by (desiring the) fruit of action become the instrument of the action and are pitiable, for they invite misery only.
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Chapter 9, śloka 18,
gatirbhartā prabhuḥ sākṣī
nivāsaḥ śaraṇaṃ suhṛt |
prabhavaḥ pralayaḥ sthānaṃ
nidhānaṃ bījamavyayam ||
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(gatiḥ bhartā prabhuḥ sākṣī
nivāsaḥ śaraṇam suhṛt |
prabhavaḥ pralayaḥ sthānam
nidhānam bījam avyayam ||)
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Meaning :
(I AM) the destination, the protector and savior, the Lord, the witness, the abode, the shelter, the very heart / the Friend and Beloved, I AM the origin, evolution and the dissolution, The Ultimate, the imperishable seed and the only refuge.
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Chapter 18, śloka 62,
tameva śaraṇaṃ gaccha
sarvabhāvena bhārata |
tatprasādātparāṃ śāntiṃ
sthānaṃ prāpsyasi śāśvatam ||
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(tam eva śaraṇam gaccha
sarvabhāvena bhārata |
tat-prasādāt parām śāntim
sthānam prāpsyasi śāśvatam ||)
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Meaning :
Therefore, with all your heart, seek shelter in Him alone. Through His grace, you shall attain the abode that is bliss supreme and peace eternal.
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Chapter 18, śloka 66,
sarvadharmānparityajya
māmekaṃ śaraṇaṃ vraja |
ahaṃ tvā sarvapāpebhyo
mokṣayiṣyāmi mā śucaḥ ||
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(sarvadharmān parityajya
mām ekam śaraṇam vraja |
aham tvā sarvapāpebhyaḥ
mokṣayiṣyāmi mā śucaḥ ||)
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Meaning :
Put aside all the different tendencies of mind (vṛtti-s), come to Me, take shelter in Me. I shall liberate you from all sin, Grieve not.
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