Friday, August 1, 2014

आज का श्लोक, ’शरीराणि’ / ’śarīrāṇi’

आज का श्लोक,  ’शरीराणि’ / ’śarīrāṇi’
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’शरीराणि’ / ’śarīrāṇi’ - शरीर (बहुवचन),

अध्याय 2, श्लोक 22,
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वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥
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(वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरः अपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णानि अन्यानि संयाति नवानि देही ॥)
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भावार्थ :
जैसे पुराने वस्त्रों को त्यागकर मनुष्य दूसरे (नये) वस्त्रों को धारण कर लेता है, उसी प्रकार देही (देह से संयुक्त चेतन-सत्ता, जीव) भी (क्रमशः अनेक जन्मों से गुजरते हुए) विभिन्न शरीरों को त्यागता और अन्य दूसरे शरीरों को धारण / ग्रहण किया करता है ।
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’शरीराणि’ / ’śarīrāṇi’ - body (bodies), - plural.

Chapter 2, shloka 22,

vāsāṃsi jīrṇāni yathā vihāya
navāni gṛhṇāti naro:'parāṇi |
tathā śarīrāṇi vihāya jīrṇā-
nyanyāni saṃyāti navāni dehī ||
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(vāsāṃsi jīrṇāni yathā vihāya
navāni gṛhṇāti naraḥ aparāṇi |
tathā śarīrāṇi vihāya jīrṇāni
anyāni saṃyāti navāni dehī ||)
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Meaning :
As a person puts off old worn-out cloths and puts on the other new ones, so also the consciousness (self) associated with the physical form (body) discards the old worn-out bodies and takes on newer bodies.  
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