Friday, August 1, 2014

आज का श्लोक, ’शश्वत्’ / ’śaśvat’

आज का श्लोक,  ’शश्वत्’ / ’śaśvat’
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’शश्वत्’ / ’śaśvat’ - स्थिर, सदा रहनेवाली,

अध्याय 9, श्लोक 31,

क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति ।
कौन्तेय प्रति जानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति ॥
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(क्षिप्रम् भवति धर्मात्मा शश्वत् शान्तिम् निगच्छति ।
कौन्तेय प्रति जानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति ॥)
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भावार्थ :
(मुझको अनन्यभाव से भजनेवाला) शीघ्र ही आत्मा के धर्म में स्थित हो जाता है, और नित्य विद्यमान शान्ति को उपलब्ध हो जाता है । हे पार्थ (अर्जुन) इसे निश्चयपूर्वक सत्य जानो कि मेरा भक्त कभी नष्ट नहीं होता ।
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’शश्वत्’ / ’śaśvat’ -  staying for ever, abiding for ever, eternal,

Chapter 9, śloka 31,

kṣipraṃ bhavati dharmātmā
śaśvacchāntiṃ nigacchati |
kaunteya prati jānīhi
na me bhaktaḥ praṇaśyati ||
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(kṣipram bhavati dharmātmā
śaśvat śāntim nigacchati |
kaunteya prati jānīhi
na me bhaktaḥ praṇaśyati ||)
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Meaning : of the
(One devoted to Me with dedication undivided) soon attains the state of dharma of the Self, and along-with the peace ultimate.
O pārtha (arjuna)! Know for certain, My devotee is never lost.
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