आज का श्लोक,
’वेदान्तकृत्’ / ’vedāntakṛt’
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’वेदान्तकृत्’ / ’vedāntakṛt’ - वेदान्त का अधिष्ठाता, वेदान्त के तत्त्व को उद्घाटित तथा प्रकाशित करनेवाला,
अध्याय 15, श्लोक 15,
सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो
मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च ।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो
वेदान्तकृद्वेदविदेवचाहम् ॥
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(सर्वस्य च अहम् हृदि संनिविष्टः
मत्तः स्मृतिः ज्ञानम् अपोहनम् च ।
वेदैः सर्वैः अहम् एव वेद्यः
वेदान्तकृत्-वेदवित् एव च अहम् ॥)
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भावार्थ :
'मैं' सबके हृदय में चेतना के रूप में सदा अवस्थित हूँ । मुझसे ही प्राणिमात्र में स्मृति, ज्ञान एवं उनका उद्गम, संकल्पों का उद्भव, विकल्प और विलोपन होता रहता है । पुनः समस्त वेदों में एकमात्र मुझे ही जानने योग्य कहा गया है । वेदान्त का प्रणेता, वेदार्थ का कर्ता और वेद को समझनेवाला भी मैं ही हूँ ।
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’वेदान्तकृत्’ / ’vedāntakṛt’
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’वेदान्तकृत्’ / ’vedāntakṛt’ - वेदान्त का अधिष्ठाता, वेदान्त के तत्त्व को उद्घाटित तथा प्रकाशित करनेवाला,
अध्याय 15, श्लोक 15,
सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो
मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च ।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो
वेदान्तकृद्वेदविदेवचाहम् ॥
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(सर्वस्य च अहम् हृदि संनिविष्टः
मत्तः स्मृतिः ज्ञानम् अपोहनम् च ।
वेदैः सर्वैः अहम् एव वेद्यः
वेदान्तकृत्-वेदवित् एव च अहम् ॥)
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भावार्थ :
'मैं' सबके हृदय में चेतना के रूप में सदा अवस्थित हूँ । मुझसे ही प्राणिमात्र में स्मृति, ज्ञान एवं उनका उद्गम, संकल्पों का उद्भव, विकल्प और विलोपन होता रहता है । पुनः समस्त वेदों में एकमात्र मुझे ही जानने योग्य कहा गया है । वेदान्त का प्रणेता, वेदार्थ का कर्ता और वेद को समझनेवाला भी मैं ही हूँ ।
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’वेदान्तकृत्’ / ’vedāntakṛt’ - The One is, and Who has laid down the foundation of vedānta,
Chapter 15, śloka 15,
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sarvasya cāhaṃ hṛdi sanniviṣṭo
mattaḥ smṛtirjñānamapohanaṃ ca |
vedaiśca sarvairahameva vedyo
vedāntakṛdvedavidevacāham ||
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(sarvasya ca aham hṛdi saṃniviṣṭaḥ
mattaḥ smṛtiḥ jñānam apohanam ca |
vedaiḥ sarvaiḥ aham eva vedyaḥ
vedāntakṛt-vedavit eva ca aham ||)
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Meaning :
I am seated in the Hearts of all being. I am the source of memory, knowledge and forgetfulness also. From Me emerge all thought (vṛtti / saṃkalpa), choice and rejection, and also their dissolution . I am the principle all the Vedas speak of, worth-known, worth-knowing, and is learnt from. Alone I am the author and the only one, Who knows the vedas.
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