आज का श्लोक, ’व्यक्तयः’ / ’vyaktayaḥ’
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’व्यक्तयः’ / ’vyaktayaḥ’ - व्यक्ति (बहुवचन)
अध्याय 8, श्लोक 18,
अव्यक्ताद्व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे ।
रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंञ्ज्ञके ॥
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(अव्यक्तात् व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्ति अहरागमे ।
रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्र एव अव्यक्तसञ्ज्ञके ॥)
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भावार्थ :
अव्यक्त से सभी व्यक्त नाम-रूप अर्थात् व्यक्ति (अभिव्यक्तियाँ, अर्थात् जीव-सत्ताएँ) दिन के आगमन के साथ उत्पन्न / प्रकट होती हैं, तथा रात्रि का आगमन होने पर उसी अव्यक्त नामक अपने मूल कारण में प्रलीन हो जाती हैं ।
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टिप्पणी :
यह एक ऐसा बिन्दु है जहाँ पर ’ब्रह्मा’ के वैदिक स्वरूप तथा पौराणिक स्वरूप के आधार पर भिन्न-भिन्न रीति और शैली में उक्त श्लोक का भावार्थ स्पष्ट किया जा सकता है, और वे परस्पर विरोधी न होकर श्रोता / पाठक की मानसिकता और परिपक्वता के अनुसार ग्राह्य या अग्राह्य भी हो सकती हैं । श्रीमद्भग्वद्गीता में ऐसे अनेक स्थान हैं, जहाँ पर इस तरह का संशय उत्पन्न हो सकता है । लेकिन जैसा कि कहा जाता है "सत्यं तु समग्रं भवति", आग्रह या मतवाद में सीमित न रहकर सत्य को समग्र रूप में ग्रहण कर लेना और संशयों का निवारण कर लिया जाना ही श्रेयस्कर है ।
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’व्यक्तयः’ / ’vyaktayaḥ’ - व्यक्ति (बहुवचन)
अध्याय 8, श्लोक 18,
अव्यक्ताद्व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे ।
रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंञ्ज्ञके ॥
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(अव्यक्तात् व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्ति अहरागमे ।
रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्र एव अव्यक्तसञ्ज्ञके ॥)
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भावार्थ :
अव्यक्त से सभी व्यक्त नाम-रूप अर्थात् व्यक्ति (अभिव्यक्तियाँ, अर्थात् जीव-सत्ताएँ) दिन के आगमन के साथ उत्पन्न / प्रकट होती हैं, तथा रात्रि का आगमन होने पर उसी अव्यक्त नामक अपने मूल कारण में प्रलीन हो जाती हैं ।
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टिप्पणी :
यह एक ऐसा बिन्दु है जहाँ पर ’ब्रह्मा’ के वैदिक स्वरूप तथा पौराणिक स्वरूप के आधार पर भिन्न-भिन्न रीति और शैली में उक्त श्लोक का भावार्थ स्पष्ट किया जा सकता है, और वे परस्पर विरोधी न होकर श्रोता / पाठक की मानसिकता और परिपक्वता के अनुसार ग्राह्य या अग्राह्य भी हो सकती हैं । श्रीमद्भग्वद्गीता में ऐसे अनेक स्थान हैं, जहाँ पर इस तरह का संशय उत्पन्न हो सकता है । लेकिन जैसा कि कहा जाता है "सत्यं तु समग्रं भवति", आग्रह या मतवाद में सीमित न रहकर सत्य को समग्र रूप में ग्रहण कर लेना और संशयों का निवारण कर लिया जाना ही श्रेयस्कर है ।
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’व्यक्तयः’ / ’vyaktayaḥ’ - manifest life-forms, sentient beings,
Chapter 8, śloka 18,
avyaktādvyaktayaḥ sarvāḥ
prabhavantyaharāgame |
rātryāgame pralīyante
tatraivāvyaktasaṃñjñake ||
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(avyāktāt vyaktayaḥ sarvāḥ
prabhavanti aharāgame |
rātryāgame pralīyante
tatra eva avyaktasañjñake ||)
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Meaning :
With the rise of the day (of Brahmā), all the beings are born from the undistinguished principle (avyākta) and appear in their specific manifest name and form. And similarly with the coming up of the night (of Brahmā), they disappear in the same undistinguished principle, which is named (avyākta).
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Note :
On the basis of vaidika or paurāṇika approach, there may be different interpretations of the term Brahmā, Who is a devatā, a divine entity on one hand, and also a form of Intelligence / Consciousness Supreme that functions in the role of devatā. The only way to deal with the subject is, with a comprehensive approach by treating the meaning 'Brahmā' of in relevant and appropriate manner.
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