आज का श्लोक,
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अध्याय 10, श्लोक 38,
दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम् ।
मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम् ॥
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(दण्डः दमयताम् अस्मि नीतिः अस्मि जिगीषताम् ।
मौनम् च एव अस्मि गुह्यानाम् ज्ञानम् ज्ञानवताम् अहम् ॥)
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भावार्थ :
शासन करनेवालों की शासन / शासित करने की शक्ति मैं हूँ, जीतने का यत्न करने (और जीतने) वालों की नीति मैं हूँ, अस्तित्व के गूढ रहस्यों को जाननेवालों का मौन मैं हूँ, तथा ज्ञानीजनों का ज्ञान मैं हूँ । अपने-आप के परम रहस्य को जान लेनेवाले प्रायः मौन रहते हैं, और ऐसे ही ज्ञानियों का ज्ञान मैं हूँ ।
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टिप्पणी :
दम् > दाम्यति, रोकना, इन्द्रिय-दमन या दुष्ट वृत्तियों का दमन, जिसे ’दण्ड’ की सहायता से किया जाता है । इन्द्रियाँ और प्रवृत्तियाँ स्वच्छन्द पशु हैं, जिन्हें बलपूर्वक ही नियन्त्रण में रखा जाता है, वह बल मानसिक रूप में संकल्प और उन्हें शासन में रखने की आवश्यकता को अनुभव करने पर ही जागृत होता है । जीतने का यत्न करनेवाले यदि अनीति पर चलते हैं तो अन्ततः हार जाते हैं, जिसे दूसरे शब्दों में कहा जाता है, : ’सत्यमेव जयते’ । इसी ’नीति’ शब्द को हम पुनः इस ग्रन्थ के अन्तिम अध्याय 18 के अन्तिम श्लोक के अन्त में विद्यमान देखते हैं ।
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Chapter 10, śloka 38,
daṇḍo damayatāmasmi
nītirasmi jigīṣatām |
maunaṃ caivāsmi guhyānāṃ
jñānaṃ jñānavatāmaham ||
--
(daṇḍaḥ damayatām asmi
nītiḥ asmi jigīṣatām |
maunam ca eva asmi guhyānām
jñānam jñānavatām aham ||)
--
Meaning :
I AM the sceptre (rājadaṇḍa) of the ruler, I AM the ethics (nīti) of the victorius, I AM the silence (mauna) of those who know the secret, and I AM the wisdom (jñāna) of the wise (jñānavān).
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Note :
The word daṇḍaḥ has many connotations. For a ruler, it means the sceptre, for a seeker (saṃnyāsī), this word means control over the outgoing senses and mind.
2. नयति, यया नीयते सा नीतिः, > nayati, yayā nīyate sā nītiḥ > which takes one (to goal, success) is nīti.
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अध्याय 10, श्लोक 38,
दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम् ।
मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम् ॥
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(दण्डः दमयताम् अस्मि नीतिः अस्मि जिगीषताम् ।
मौनम् च एव अस्मि गुह्यानाम् ज्ञानम् ज्ञानवताम् अहम् ॥)
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भावार्थ :
शासन करनेवालों की शासन / शासित करने की शक्ति मैं हूँ, जीतने का यत्न करने (और जीतने) वालों की नीति मैं हूँ, अस्तित्व के गूढ रहस्यों को जाननेवालों का मौन मैं हूँ, तथा ज्ञानीजनों का ज्ञान मैं हूँ । अपने-आप के परम रहस्य को जान लेनेवाले प्रायः मौन रहते हैं, और ऐसे ही ज्ञानियों का ज्ञान मैं हूँ ।
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टिप्पणी :
दम् > दाम्यति, रोकना, इन्द्रिय-दमन या दुष्ट वृत्तियों का दमन, जिसे ’दण्ड’ की सहायता से किया जाता है । इन्द्रियाँ और प्रवृत्तियाँ स्वच्छन्द पशु हैं, जिन्हें बलपूर्वक ही नियन्त्रण में रखा जाता है, वह बल मानसिक रूप में संकल्प और उन्हें शासन में रखने की आवश्यकता को अनुभव करने पर ही जागृत होता है । जीतने का यत्न करनेवाले यदि अनीति पर चलते हैं तो अन्ततः हार जाते हैं, जिसे दूसरे शब्दों में कहा जाता है, : ’सत्यमेव जयते’ । इसी ’नीति’ शब्द को हम पुनः इस ग्रन्थ के अन्तिम अध्याय 18 के अन्तिम श्लोक के अन्त में विद्यमान देखते हैं ।
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Chapter 10, śloka 38,
daṇḍo damayatāmasmi
nītirasmi jigīṣatām |
maunaṃ caivāsmi guhyānāṃ
jñānaṃ jñānavatāmaham ||
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(daṇḍaḥ damayatām asmi
nītiḥ asmi jigīṣatām |
maunam ca eva asmi guhyānām
jñānam jñānavatām aham ||)
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Meaning :
I AM the sceptre (rājadaṇḍa) of the ruler, I AM the ethics (nīti) of the victorius, I AM the silence (mauna) of those who know the secret, and I AM the wisdom (jñāna) of the wise (jñānavān).
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Note :
The word daṇḍaḥ has many connotations. For a ruler, it means the sceptre, for a seeker (saṃnyāsī), this word means control over the outgoing senses and mind.
2. नयति, यया नीयते सा नीतिः, > nayati, yayā nīyate sā nītiḥ > which takes one (to goal, success) is nīti.
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