आज का श्लोक,
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अध्याय 6, श्लोक 20,
यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया ।
यत्र चैवात्मनात्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति ॥
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(यत्र उपरमते चित्तम् निरुद्धम् योगसेवया ।
यत्र च एवआत्मानम् पश्यन् आत्मनि तुष्यति ॥)
--
भावार्थ :
जहाँ इस योग साधन के अभ्यास से निरुद्ध हुई जागरूक चित्त-वृत्ति (शान्त हुआ चित्त), अनायास सुस्थिर और शान्त हो जाती है, और जहाँ अपने-आप (आत्मा) को अपने-आप (आत्मा) में देखते हुए, आत्मा में संतोष पाया जाता है, ...
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Chapter 6, śloka 20,
yatroparamate cittaṃ
niruddhaṃ yogasevayā |
yatra caivātmanātmānaṃ
paśyannātmani tuṣyati ||
--
(yatra uparamate cittam
niruddham yogasevayā |
yatra ca evaātmānam
paśyan ātmani tuṣyati ||)
--
Meaning :
Through this practice of yoga, where the modes of the mind (citta-vṛttis) are brought to utter stillness and it enjoyes peace effortless and natural, Through this practice of yoga, where one realizes the Self in Self and through Self, and is content in one's own That Self.
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अध्याय 6, श्लोक 20,
यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया ।
यत्र चैवात्मनात्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति ॥
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(यत्र उपरमते चित्तम् निरुद्धम् योगसेवया ।
यत्र च एवआत्मानम् पश्यन् आत्मनि तुष्यति ॥)
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भावार्थ :
जहाँ इस योग साधन के अभ्यास से निरुद्ध हुई जागरूक चित्त-वृत्ति (शान्त हुआ चित्त), अनायास सुस्थिर और शान्त हो जाती है, और जहाँ अपने-आप (आत्मा) को अपने-आप (आत्मा) में देखते हुए, आत्मा में संतोष पाया जाता है, ...
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Chapter 6, śloka 20,
yatroparamate cittaṃ
niruddhaṃ yogasevayā |
yatra caivātmanātmānaṃ
paśyannātmani tuṣyati ||
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(yatra uparamate cittam
niruddham yogasevayā |
yatra ca evaātmānam
paśyan ātmani tuṣyati ||)
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Meaning :
Through this practice of yoga, where the modes of the mind (citta-vṛttis) are brought to utter stillness and it enjoyes peace effortless and natural, Through this practice of yoga, where one realizes the Self in Self and through Self, and is content in one's own That Self.
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