Thursday, September 25, 2014

9/11,

आज का श्लोक,
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अध्याय 9, श्लोक 11,
अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम् ।
परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम् ॥
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(अवजानन्ति माम् मूढाः मानुषीम् तनुम् आश्रितम् ।
परम् भाव अजानन्तः मम भूतमहेश्वरम् ॥)
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भावार्थ :
सब प्राणियों के एकमात्र परमेश्वर, मुझ मनुष्य-शरीर धारण करनेवाले के परम भाव (यथार्थ स्वरूप) से अनभिज्ञ मूढबुद्धि, मेरी (परमेश्वर की) उपेक्षा करते हैं ।
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टिप्पणी :
अध्याय 10 के श्लोक 22 में भगवान् श्रीकृष्ण ने अपना / आत्म अथवा परमेश्वर का उल्लेख ’चेतना’ या ’अस्मि-चेतना’ के रूप में किया है । इस अस्मि-चेतना (मैं हूँ, अपने अस्तित्व का सहज बोध जो प्राणि-मात्र में अनायास होता है) ने ही शरीर को धारण किया होता है, न कि शरीर ने अस्मि-चेतना को, इस अस्मि-चेतना के यथार्थ तत्व के प्रति उदासीन, इसकी अवहेलना करनेवाले इस अस्मि-चेतना के स्रोत (परमेश्वर) से अनभिज्ञ रह जाते हैं ।
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Chapter 9, śloka 11,

avajānanti māṃ mūḍhā
mānuṣīṃ tanumāśritam |
paraṃ bhāvamajānanto
mama bhūtamaheśvaram ||
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(avajānanti mām mūḍhāḥ
mānuṣīm tanum āśritam |
param bhāva ajānantaḥ
mama bhūtamaheśvaram ||)
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Meaning :
Those who are unaware that I AM The Lord of all beings, The Supreme Consciousness, Myself is manifest in the form of this physical body (and the world),. They ignore ME and tend to treat ME as a mere human being.
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