आज का श्लोक, ’रक्षांसि’ / ’rakṣāṃsi’
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’रक्षांसि’ / ’rakṣāṃsi’ - राक्षसगण,
अध्याय 11, श्लोक 36,
अर्जुन उवाच :
स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते ।
रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसंघाः ॥
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(स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्-प्रहृष्यति अनुरज्यते च ।
रक्षांसि भीतानि दिशः द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्घाः ॥)
--
भावार्थ :
अर्जुन बोले :
हे हृषीकेश ! तुममें ही तुम्हारे ही भीतर, संपूर्ण जगत् तुम्हारी विशिष्ट कीर्ति के में प्रहर्षित होता है, तुममें ही खेलता रमता है । राक्षसगण भी डरकर भी तुममें ही अवस्थित विभिन्न दिशाओं में दौड़ते हैं और सिद्धों के सभी संघ भी तुममें ही तुम्हें नमन करते हैं ।
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’रक्षांसि’ / ’rakṣāṃsi’ - the demons,
Chapter 11, śloka 36,
arjuna uvāca :
sthāne hṛṣīkeśa tava prakīrtyā
jagatprahṛṣyatyanurajyate |
rakṣāṃsi bhītāni diśo dravanti
sarve namasyanti ca siddhasaṃghāḥ ||
--
(sthāne hṛṣīkeśa tava prakīrtyā
jagat-prahṛṣyati anurajyate ca |
rakṣāṃsi bhītāni diśaḥ dravanti
sarve namasyanti ca siddhasaṅghāḥ ||)
--
Meaning :
O hṛṣīkeśa (śrīkṛṣṇa)! Indeed the whole world has existence within You, and it rejoices and sports within you only because of your glory. Demons frightened, run in all directions, and the sages and seers bow down before Thee!
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’रक्षांसि’ / ’rakṣāṃsi’ - राक्षसगण,
अध्याय 11, श्लोक 36,
अर्जुन उवाच :
स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते ।
रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसंघाः ॥
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(स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्-प्रहृष्यति अनुरज्यते च ।
रक्षांसि भीतानि दिशः द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्घाः ॥)
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भावार्थ :
अर्जुन बोले :
हे हृषीकेश ! तुममें ही तुम्हारे ही भीतर, संपूर्ण जगत् तुम्हारी विशिष्ट कीर्ति के में प्रहर्षित होता है, तुममें ही खेलता रमता है । राक्षसगण भी डरकर भी तुममें ही अवस्थित विभिन्न दिशाओं में दौड़ते हैं और सिद्धों के सभी संघ भी तुममें ही तुम्हें नमन करते हैं ।
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’रक्षांसि’ / ’rakṣāṃsi’ - the demons,
Chapter 11, śloka 36,
arjuna uvāca :
sthāne hṛṣīkeśa tava prakīrtyā
jagatprahṛṣyatyanurajyate |
rakṣāṃsi bhītāni diśo dravanti
sarve namasyanti ca siddhasaṃghāḥ ||
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(sthāne hṛṣīkeśa tava prakīrtyā
jagat-prahṛṣyati anurajyate ca |
rakṣāṃsi bhītāni diśaḥ dravanti
sarve namasyanti ca siddhasaṅghāḥ ||)
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Meaning :
O hṛṣīkeśa (śrīkṛṣṇa)! Indeed the whole world has existence within You, and it rejoices and sports within you only because of your glory. Demons frightened, run in all directions, and the sages and seers bow down before Thee!
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