आज का श्लोक,
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अध्याय 9, श्लोक 9,
न च मां तानि कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय ।
उदासीनवदासीनमसक्तं तेषु कर्मसु ॥
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(न च माम् तानि कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय ।
उदासीनवत् आसीनम् असक्तम् तेषु कर्मसु ॥)
--
भावार्थ :
हे धनञ्जय (अर्जुन)! और (किन्तु) मुझे वे कर्म बाँधते भी नहीं, मैं उनसे उदासीनवत् अलिप्त रहता हुआ उनमें अवस्थित होता हूँ ।
--
टिप्पणी :
पिछले श्लोक में सम्पूर्ण प्राणियों के प्रकृति के नियन्त्रण में होने के कारण उनके पुनः पुनः व्यक्त से अव्यक्त तथा अव्यक्त से व्यक्त रूप ग्रहण करने के बारे में कहा गया । चूँकि मैं ही उनमें अवस्थित हूँ, मैं ही अपनी प्रकृति से तादात्म्य कर उनके व्यक्त तथा अव्यक्त भाव का सृजन और विलोपन करता हूँ, अर्थात् प्रकृति के माध्यम से मेरे ही कारण उनका यह रूपान्तरण घटित होता रहता है, ..
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Chapter , śloka 9,
na ca māṃ tāni karmāṇi
nibadhnanti dhanañjaya |
udāsīnavadāsīna-
masaktaṃ teṣu karmasu ||
--
(na ca mām tāni karmāṇi
nibadhnanti dhanañjaya |
udāsīnavat āsīnam
asaktam teṣu karmasu ||)
--
Meaning :
O dhanañjaya (arjuna) !Their actions bind ME not, staying like aloof, Unattached, though I AM situated in them (as the only support and cause of all those beings),...
--
Note :
This has reference to the last śloka 8 of this Chapter where-in śrīkṛṣṇa tells:
It is by (MY own power of) manifestation / prakṛti, that the beings involuntarily go through the cycle of coming into existence and disappear, and I AM in this way through MY own power their only Real Cause and support.
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अध्याय 9, श्लोक 9,
न च मां तानि कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय ।
उदासीनवदासीनमसक्तं तेषु कर्मसु ॥
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(न च माम् तानि कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय ।
उदासीनवत् आसीनम् असक्तम् तेषु कर्मसु ॥)
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भावार्थ :
हे धनञ्जय (अर्जुन)! और (किन्तु) मुझे वे कर्म बाँधते भी नहीं, मैं उनसे उदासीनवत् अलिप्त रहता हुआ उनमें अवस्थित होता हूँ ।
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टिप्पणी :
पिछले श्लोक में सम्पूर्ण प्राणियों के प्रकृति के नियन्त्रण में होने के कारण उनके पुनः पुनः व्यक्त से अव्यक्त तथा अव्यक्त से व्यक्त रूप ग्रहण करने के बारे में कहा गया । चूँकि मैं ही उनमें अवस्थित हूँ, मैं ही अपनी प्रकृति से तादात्म्य कर उनके व्यक्त तथा अव्यक्त भाव का सृजन और विलोपन करता हूँ, अर्थात् प्रकृति के माध्यम से मेरे ही कारण उनका यह रूपान्तरण घटित होता रहता है, ..
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Chapter , śloka 9,
na ca māṃ tāni karmāṇi
nibadhnanti dhanañjaya |
udāsīnavadāsīna-
masaktaṃ teṣu karmasu ||
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(na ca mām tāni karmāṇi
nibadhnanti dhanañjaya |
udāsīnavat āsīnam
asaktam teṣu karmasu ||)
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Meaning :
O dhanañjaya (arjuna) !Their actions bind ME not, staying like aloof, Unattached, though I AM situated in them (as the only support and cause of all those beings),...
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Note :
This has reference to the last śloka 8 of this Chapter where-in śrīkṛṣṇa tells:
It is by (MY own power of) manifestation / prakṛti, that the beings involuntarily go through the cycle of coming into existence and disappear, and I AM in this way through MY own power their only Real Cause and support.
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