आज का श्लोक,
___________________________
अध्याय 3, श्लोक 5,
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् ।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥
--
(न हि कश्चित् क्षणम् अपि जातु तिष्ठति अकर्मकृत् ।
कार्यते हि अवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैः गुणैः ॥)
--
भावार्थ :
ऐसा कोई एक क्षण भी कभी नहीं होता जब कोई बिना कर्म किए रह सके । सारा अस्तित्व ही प्रकृति से उत्पन्न तीन गुणों के माध्यम से बाध्य होकर कर्म में प्रवृत्त रहता है ।
--
___________________________
अध्याय 3, श्लोक 5,
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् ।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥
--
(न हि कश्चित् क्षणम् अपि जातु तिष्ठति अकर्मकृत् ।
कार्यते हि अवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैः गुणैः ॥)
--
भावार्थ :
ऐसा कोई एक क्षण भी कभी नहीं होता जब कोई बिना कर्म किए रह सके । सारा अस्तित्व ही प्रकृति से उत्पन्न तीन गुणों के माध्यम से बाध्य होकर कर्म में प्रवृत्त रहता है ।
--
Chapter 3, śloka 5,
na hi kaścitkṣaṇamapi
jātu tiṣṭhatyakarmakṛt |
kāryate hyavaśaḥ karma
sarvaḥ prakṛtijairguṇaiḥ ||
--
(na hi kaścit kṣaṇam api
jātu tiṣṭhati akarmakṛt |
kāryate hi avaśaḥ karma
sarvaḥ prakṛtijaiḥ guṇaiḥ ||)
--
Meaning :
There is never even a single moment when one could keep away from action (karma) . Forced by the three attributes (guṇa-s) born of nature (prakṛti) the whole existence is always bound to perform action (karma).
--
No comments:
Post a Comment