Wednesday, September 17, 2014

4/25,

आज का श्लोक,
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अध्याय 4, श्लोक 25,

दैवमेवापरे यज्ञं योगिनः पर्युपासते ।
ब्रह्माग्नावपरे यज्ञं यज्ञेनैवापजुह्वति ॥
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(दैवम् एव अपरे यज्ञम् योगिनः पर्युपासते ।
ब्रह्माग्नौ अपरे यज्ञम् यज्ञ्नेन एव उपजुह्वति ॥)
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भावार्थ :
दूसरे योगीजन देवताओं के (साकार स्वरूप के) पूजनरूपी यज्ञ का ही भलीभाँति अनुष्ठान किया करते हैं जबकि अन्य कुछ योगी, ब्रह्म (आत्मा के निराकार स्वरूप) रूपी अग्नि में यज्ञ (आत्मा में ज्ञान द्वारा स्थित हो रहने) के द्वारा ही हवन किया करते हैं ।
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Chapter 4, śloka 25,

daivamevāpare yajñaṃ
yoginaḥ paryupāsate |
brahmāgnāvapare yajñaṃ
yajñenaivāpajuhvati ||
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(daivam eva apare yajñam
yoginaḥ paryupāsate |
brahmāgnau apare yajñam
yajñnena eva upajuhvati ||)
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Meaning :
Some yogi, perform the sacrifice (yajña) in the way of worshiping the divine forms of Brahman, while others dedicate offerings (havana) in the sacrificial Fire (Self / Brahman) by way of abiding in Brahman through contemplation of Brahman / Self.
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