आज का श्लोक, ’रजसि’ / ’rajasi’
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’रजसि’ / ’rajasi’ - रजोगुण में,
अध्याय 14, श्लोक 12,
लोभः प्रवृत्तिरारम्भः कर्मणामशमः स्पृहा ।
रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ ॥
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(लोभः प्रवृत्तिः आरम्भः कर्मणाम् अशमः स्पृहा ।
रजसि एतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ ॥)
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भावार्थ :
हे भरतर्षभ (अर्जुन)! लोभ, प्रवृत्ति (रुचि) कर्मों का आरम्भ, अशान्ति, और लालसा, रजोगुण के बढ़ जाने पर चित्त में ये सभी जन्म लेते हैं ।
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अध्याय 14, श्लोक 15,
रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसङ्गिषु जायते ।
तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते ॥
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(रजसि प्रलयम् गत्वा कर्मसङ्गिषु जायते ।
तथा प्रलीनः तमसि मूढयोनिषु जायते ॥)
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भावार्थ :
रजोगुण जब चित्त में प्रबल होता है, उस अवस्था में मृत्यु को प्राप्त होनेवाले कर्मों में आसक्ति रखनेवालों में उत्पन्न होते हैं । और तमोगुण जब चित्त में प्रबल होता है, उस अवस्था में मृत्यु को प्राप्त होनेवाले मूढयोनि में उत्पन्न होते हैं ।
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’रजसि’ / ’rajasi’ - रजोगुण में,
अध्याय 14, श्लोक 12,
लोभः प्रवृत्तिरारम्भः कर्मणामशमः स्पृहा ।
रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ ॥
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(लोभः प्रवृत्तिः आरम्भः कर्मणाम् अशमः स्पृहा ।
रजसि एतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ ॥)
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भावार्थ :
हे भरतर्षभ (अर्जुन)! लोभ, प्रवृत्ति (रुचि) कर्मों का आरम्भ, अशान्ति, और लालसा, रजोगुण के बढ़ जाने पर चित्त में ये सभी जन्म लेते हैं ।
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अध्याय 14, श्लोक 15,
रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसङ्गिषु जायते ।
तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते ॥
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(रजसि प्रलयम् गत्वा कर्मसङ्गिषु जायते ।
तथा प्रलीनः तमसि मूढयोनिषु जायते ॥)
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भावार्थ :
रजोगुण जब चित्त में प्रबल होता है, उस अवस्था में मृत्यु को प्राप्त होनेवाले कर्मों में आसक्ति रखनेवालों में उत्पन्न होते हैं । और तमोगुण जब चित्त में प्रबल होता है, उस अवस्था में मृत्यु को प्राप्त होनेवाले मूढयोनि में उत्पन्न होते हैं ।
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’रजसि’ / ’rajasi’ - in the tendencies of passion, (rajoguṇa),
Chapter 14, śloka 12,
lobhaḥ pravṛttirārambhaḥ
karmaṇāmaśamaḥ spṛhā |
rajasyetāni jāyante
vivṛddhe bharatarṣabha ||
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(lobhaḥ pravṛttiḥ ārambhaḥ
karmaṇām aśamaḥ spṛhā |
rajasi etāni jāyante
vivṛddhe bharatarṣabha ||)
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Meaning :
O bharatarṣabha (arjuna)! When the mode of passion (rajoguṇa) predominates (in the mind, -over satoguṇa and tamoajoguṇa), one is overtaken by greed, activity, urge for the activity, restlessness and cravings for enjoyment.
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Chapter 14, śloka 15,
rajasi pralayaṃ gatvā
karmasaṅgiṣu jāyate |
tathā pralīnastamasi
mūḍhayoniṣu jāyate ||
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(rajasi pralayam gatvā
karmasaṅgiṣu jāyate |
tathā pralīnaḥ tamasi
mūḍhayoniṣu jāyate ||)
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Meaning :
One, who dies in a state of mind, when the passion (rajoguṇa) is prevailing, he attains the next birth among the people who are obsessed with activity. And one, who dies in a state of mind, when the sloth (tamoguṇa) is prevailing, he attains the next birth in the wombs of impure, dull and animal tendencies
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