Tuesday, September 16, 2014

3/14,

आज का श्लोक,
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अध्याय 3, श्लोक 14,

अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः ।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः ॥
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(अन्नात् भवन्ति भूतानि पर्जन्यात् अन्न सम्भवः ।
यज्ञात् भवति पर्जन्यः यज्ञः कर्मसमुद्भवः ॥)
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भावार्थ :
अन्न से सम्पूर्ण भूतों की उत्पत्ति होती है, (किन्तु) अन्न की उत्पत्ति पर्जन्य से होती है, (और) पर्जन्य की उत्पत्ति यज्ञ से होती है, यज्ञ से, जो कि विहित कर्म-समष्टि (से उत्पन्न होता) है ।
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टिप्पणी :
पृ > पृणोति - प्रसन्न होना, पृ > पिपर्ति, पृणाति > पालयति > पालन करना, जन् > जनयति > जन्म देना, उत्पन्न करना, पर्जन्य > जो जन्म देता है, पालन करता है, वृद्धि करता है, वर्षा । अद् > खाना, अन्नम् > जिसे खाया जाता है,
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Chapter 3, śloka 14,

annādbhavanti bhūtāni
parjanyādannasambhavaḥ |
yajñādbhavati parjanyo
yajñaḥ karmasamudbhavaḥ ||
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(annāt bhavanti bhūtāni
parjanyāt anna sambhavaḥ |
yajñāt bhavati parjanyaḥ
yajñaḥ karmasamudbhavaḥ ||)
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Meaning :
From the food / feeds (anna), the Beings (bhūta) come into existence. While feeds in turn, come through rains (parjanya), and rains (parjanya) come through the sacrifice (yajña). -The sacrifice (yajña), that is the consummation (perfection) of the action (karma).  
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Note :
पृ > पृणोति - प्रसन्न होना, pṛ > pṛṇoti - pleases, पृ > पिपर्ति, pṛ > piparti, पृणाति,  pṛṇāti > makes perfect,  > पालयति > पालन करना, pālayati > pālanam > to nourish, जन् > जनयति > jan > janayati > to generate, give existence to, पर्जन्य >  वर्षा,  parjanya >  varṣā, > rains, अद् , > ad > to eat , अन्नम्  > annam > that which is eaten - food , (In German > 'essen')
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