Sunday, September 14, 2014

आज का श्लोक, ’रागी’ / ’rāgī’

आज का श्लोक, ’रागी’ / ’rāgī’ 
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’रागी’  / ’rāgī’ - लिप्त, आसक्त,

अध्याय 18, श्लोक 27,

रागी कर्मफल प्रेप्सुर्लुब्धो हिंसात्मकोsशुचिः ।
हर्षशोकान्वितः कर्ता  राजसः परिकीर्तितः ॥
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(रागी कर्मफलप्रेप्सुः लुब्धः हिंसात्मकः अशुचिः ।
हर्षशोक-अन्वितः कर्ता राजसः परिकीर्तितः ॥)
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भावार्थ :
ऐसे कर्म को जिसे करनेवाला कर्ता रागबुद्धि से युक्त होकर कर्म के विशिष्ट फल की अपेक्षा रखता है, जो हिंसा का प्रयोग करता है, हर्ष एवं शोक युक्त है, राजस कहा जाता है ।
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टिप्पणी :
’संकल्पमेव कर्ता अत्र’ - कर्तापन का संकल्प ही ’कर्ता’ है, जिसे कर्ता कहा जाता है, ऐसी किसी सत्ता का अस्तित्व नहीं पाया जा सकता ।
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’रागी’ / ’rāgī’ - attached to, indulging in, identified with,

Chapter 18, śloka 27,

rāgī karmaphala prepsur-
lubdho  hiṃsātmakosśuciḥ |
harṣaśokānvitaḥ kartā
rājasaḥ parikīrtitaḥ ||
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(rāgī karmaphalaprepsuḥ
lubdhaḥ hiṃsātmakaḥ aśuciḥ |
harṣaśoka-anvitaḥ kartā
rājasaḥ parikīrtitaḥ ||)
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Meaning :
The one who prompted by desire, motivated by and expecting a certain result of the action, and prone to be overwhelmed by the emotions involving elation or depression from moment to moment, is said a 'rājasa -kartā (agent of the deed).
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Note :
The thought / idea of an agent (kartā) that is there behind 'action' is but an assumption, and a false notion.
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