Friday, September 26, 2014

13/5,

अध्याय 13, श्लोक 5,

महाभूतान्यहङ्कारो बुद्धिरव्यक्तमेव च ।
इन्द्रियाणि दशैकं च पञ्चचेन्द्रियगोचराः ॥
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(महाभूतानि अहङ्कारः बुद्धिः अव्यक्तम् एव च ।
इन्द्रियाणि दशैकम् च पञ्च च इन्द्रियगोचराः ॥)
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भावार्थ :
पाँच महाभूत (आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी), अहंकार, बुद्धि, एवं अव्यक्त, दस इन्द्रियाँ, एक मन, तथा पाँच इन्द्रियगम्य तत्व, ..
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टिप्पणी :
इस अध्याय के प्रथम श्लोक में इस देह को ’क्षेत्र’ की, तथा इसे ’जाननेवाले’ को ’क्षेत्रज्ञ’ की संज्ञा दी गई । दूसरे श्लोक में भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि सभी भिन्न भिन्न क्षेत्रों में ’क्षेत्रज्ञ’ मुझको ही जानो । यह ’क्षेत्र’ किस प्रकार का है, किस स्वरूप का है, तथा उसके विकार क्या हैं और उनका परिणाम (प्रभाव) क्या है इस बारे में संक्षेप में वे आगे कहेंगे, इसे वे श्लोक तीन में ध्यान से सुनने के लिए अर्जुन से कहते हैं । श्लोक चार में कुछ अतिरिक्त जानकारी इस संबंध में है । इस श्लोक 5 में वे इस ’क्षेत्र’ के मूल उपादानों का वर्णन करते हैं ।
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Chapter 13, śloka 5,

mahābhūtānyahaṅkāro
buddhiravyaktameva ca |
indriyāṇi daśaikaṃ ca
pañcacendriyagocarāḥ ||
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(mahābhūtāni ahaṅkāraḥ
buddhiḥ avyaktam eva ca |
indriyāṇi daśaikam ca
pañca ca indriyagocarāḥ ||)
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Meaning :
This body (’kṣetra’) is made of / comprises of 5 gross elements (5 mahābhūta-s), ego (ahaṅkāra), intellect (buddhi), the potential latent as the seed (avyakta), 10 senses (indriya-s), 1 mind (manaḥ / citta), and the 5 kind of elements (That are perceived, through the 5 senses, (tanmātrā-s).
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Note :
These all together constitute the 'observed' (kṣetra).  
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