Friday, September 12, 2014

आज का श्लोक, ’राज्येन’ / ’rājyena’

आज का श्लोक, ’राज्येन’ / ’rājyena’ 
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’राज्येन’ / ’rājyena’ - राज्य (का आधिपत्य) होने से,

अध्याय 1, श्लोक 32 ,

न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च ।
किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा ॥
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(न काङ्क्षे विजयम् कृष्ण न च राज्यम् सुखानि च ।
किम् नः राज्येन गोविन्द किम् भोगैः जीवितेन वा ॥)
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भावार्थ :
हे कृष्ण! (मैं) न तो विजय प्राप्त करना चाहता हूँ, और न राज्य तथा उन सुखों को । हे गोविन्द ! हमें (इस तरह से प्राप्त किए गए) राज्य से, भोगों और जीवन से भी भला क्या लाभ है ? जब, ......(आगे अगले श्लोक 33 में),
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’राज्येन’ / ’rājyena’ - having the (lordship of the) kingdom,

Chapter 1, śloka 32, 
 
na kāṅkṣe vijayaṃ kṛṣṇa 
na ca rājyaṃ sukhāni ca |
kiṃ no rājyena govinda 
kiṃ bhogairjīvitena vā ||
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(na kāṅkṣe vijayam kṛṣṇa 
na ca rājyam sukhāni ca |
kim naḥ rājyena govinda 
kim bhogaiḥ jīvitena vā ||)
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Meaning :
O kṛṣṇa! Neither (I) desire the victory, nor the kingdom. Of what worth is this kingdom, and of what the sense in living a life enjoying such pleasures?
(While, ... in the next śloka..33.)
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