आज का श्लोक, ’रहसि’ / ’rahasi’
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’रहसि’ / ’rahasi’ - एकान्त स्थान में,
अध्याय 6, श्लोक 10,
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योगी युञ्जीत सततात्मानं रहसि स्थितः ।
एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः ॥
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(योगी युञ्जीत सततम् आत्मानम् रहसि स्थितः ।
एकाकी यतचित्तात्मा निराशीः अपरिग्रहः ॥)
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भावार्थ :
योग-साधन करनेवाला को अपने मन-इन्द्रियों आदि को संयत रखते हुए आशारहित, संग्रहरहित, अकेले, एकान्त में स्थित होकर, आत्मा को निरन्तर परमात्मा (के ध्यान) में संलग्न रखे ।
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’रहसि’ / ’rahasi’ - एकान्त स्थान में,
अध्याय 6, श्लोक 10,
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योगी युञ्जीत सततात्मानं रहसि स्थितः ।
एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः ॥
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(योगी युञ्जीत सततम् आत्मानम् रहसि स्थितः ।
एकाकी यतचित्तात्मा निराशीः अपरिग्रहः ॥)
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भावार्थ :
योग-साधन करनेवाला को अपने मन-इन्द्रियों आदि को संयत रखते हुए आशारहित, संग्रहरहित, अकेले, एकान्त में स्थित होकर, आत्मा को निरन्तर परमात्मा (के ध्यान) में संलग्न रखे ।
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’रहसि’ / ’rahasi’ - secluded, isolated, (figuratively, - unconcerned)
Chapter 6, śloka 10,
yogī yuñjīta satatāt-
mānaṃ rahasi sthitaḥ |
ekākī yatacittātmā
nirāśīraparigrahaḥ ||
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(yogī yuñjīta satatam
ātmānam rahasi sthitaḥ |
ekākī yatacittātmā
nirāśīḥ aparigrahaḥ ||)
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Meaning :
Practicing yoga means, one should contemplate on the (nature of) Self without a break, while keeping away from all else, living alone, free of all thought of world and its contents.
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