Thursday, September 25, 2014

9/26,

आज का श्लोक,
___________________

अध्याय 9, श्लोक 26,

पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति ।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः ॥
--
(पत्रम् पुष्पम् फलम् तोयम् यः मे भक्त्या प्रयच्छति ।
तत् अहम् भक्त्युपहृतम् अश्नामि प्रयतात्मनः ॥)
--
भावार्थ :
पत्र (जैसे बेलपत्र या तुलसीपत्र), पुष्प, फल, तथा जल आदि, जो कुछ भी कोई भी शुद्ध-चित्त भक्त मुझे भक्ति से अर्पित करता है, उसकी भक्ति से प्रेमपूर्वक प्राप्त हुए उस उपहार को मैं प्रीति से ग्रहण करता हूँ ।
--
टिप्पणी :
यहाँ ’अश्नामि’ का शब्दशः तात्पर्य होगा ’खाता हूँ ।’ इसलिए जब हम इष्ट की मूर्ति में परमेश्वर की भावना रखते हुए उसे कुछ अर्पित करते हैं तो परमेश्वर उसे अपने-आप में विलीन कर लेता है, अर्थात् अर्पित की गई वह वस्तु परमात्मा का अंश हो जाती है । हमारे प्रकार इस प्रकार के भक्ति रूपी यज्ञ से बची सामग्री (प्रसाद) प्रत्यक्ष वह परमेश्वर ही होता है, और उसे ग्रहण कर / खाकर हम परमेश्वर से अभिन्न हो जाते हैं ।
--
Chapter 9, śloka 26,

patraṃ puṣpaṃ phalaṃ toyaṃ
yo me bhaktyā prayacchati |
tadahaṃ bhaktyupahṛta-
maśnāmi prayatātmanaḥ ||
--
(patram puṣpam phalam toyam
yaḥ me bhaktyā prayacchati |
tat aham bhaktyupahṛtam
aśnāmi prayatātmanaḥ ||)
--
Meaning :
With love and devotion, who so ever of pure in heart and mind offers ME leaf, flower, or even water, I accept the same with absolute love and honor.
--

No comments:

Post a Comment