Friday, September 19, 2014

6/39,

आज का श्लोक,
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अध्याय 6, श्लोक 39,

एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषतः ।
त्वदन्यः संशयस्यास्य छेत्ता न ह्युपपद्यते ॥
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(एतत् मे संशयम् कृष्ण छेत्तुम् अर्हसि अशेषतः ।
त्वदन्यः संशयस्य अस्य छेत्ता न हि उपपद्यते ॥)
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भावार्थ :
हे कृष्ण ! आप ही मेरे इस संशय का पूर्ण उच्छेद / निवारण करने में समर्थ हैं, और आपके सिवा दूसरा कोई नहीं हो सकता जो इसका उच्छेद / निवारण  करने में समर्थ हो ।
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Chapter 6, śloka 39,

etanme saṃśayaṃ kṛṣṇa
chettumarhasyaśeṣataḥ |
tvadanyaḥ saṃśayasyāsya
chettā na hyupapadyate ||
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(etat me saṃśayam kṛṣṇa
chettum arhasi aśeṣataḥ |
tvadanyaḥ saṃśayasya asya
chettā na hi upapadyate ||)
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Meaning :
O kṛṣṇa ! You alone could remove this my doubt. I see no-one other than You, who could be of help to me in this matter.
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