Wednesday, September 24, 2014

आज का श्लोक, ’रणात्’ / ’raṇāt’

आज का श्लोक, ’रणात्’ / ’raṇāt’
_________________________

’रणात्’ / ’raṇāt’ - रण से, युद्ध से,

अध्याय 2, श्लोक 35,

भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथाः ।
येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम् ॥
--
(भयात् रणात् उपरतम् मंस्यन्ते त्वाम् महारथा ॥
येषाम् च त्वम् बहुमतः भूत्वा यास्यसि लाघवम् ॥)
--
भावार्थ :
वे ही महारथी जिनकी दृष्टि में पहले कभी तुम बहुत मान्य थे, तुम्हें भय से रण छोड़कर भाग जानेवाला समझेंगे और तुम उनकी दृष्टि में तुच्छ समझे जाओगे ।
--

’रणात्’ / ’raṇāt’ - from the war,

Chapter 2, śloka 35,

bhayādraṇāduparataṃ
maṃsyante tvāṃ mahārathāḥ |
yeṣāṃ ca tvaṃ bahumato
bhūtvā yāsyasi lāghavam ||
--
(bhayāt raṇāt uparatam
maṃsyante tvām mahārathā ||
yeṣām ca tvam bahumataḥ
bhūtvā yāsyasi lāghavam ||)
--
Meaning :
Those great warriors that presently admire you, will think you escaped from the battle because of fear, and will treat you as coward and worthless.
--

No comments:

Post a Comment