आज का श्लोक, ’लिम्पन्ति’ / ’limpanti’
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’लिम्पन्ति’ / ’limpanti’ - लिप्त होते हैं, लिप्त करते हैं,
अध्याय 4, श्लोक 14,
न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा ।
इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते ।
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(न माम् कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा ।
इति माम् यो अभिजानाति कर्मभिः न सः बध्यते ॥)
--
भावार्थ :
न तो कर्म मुझसे लिप्त होते हैं, न मुझको लिप्त करते हैं, और न कर्मफलों से मुझे कोई आशा है, इस प्रकार से जो मुझे (अपने-आपको) सम्यक् रूपेण जान-समझ लेता है, वह कर्मों के द्वारा नहीं बाँधा जाता ।
--
टिप्पणी :
’कर्म मुझसे लिप्त नहीं होते, न मुझको लिप्त करते हैं’, का तात्पर्य यह है कि चूँकि वे मुझे स्पर्श तक नहीं करते इसलिए मुझसे उनका लिप्त होना संभव ही नहीं । और मनुष्य वैसे भी जानता है कि वह किस कर्म या भावना से लिप्त है, और किस कर्म या भावना से लिप्त नहीं है । अर्थात् कोई विशिष्ट कर्म और भावनाएँ ही (जिनसे उसका कर्तृत्व या भोक्तृत्व भाव जुड़ा होता है) ऐसी होती हैं, जिनसे वह अपने-आपको लिप्त अनुभव करता है । दूसरे शब्दों में उसे यह अच्छी तरह से पता होता है कि कर्म या भावनाएँ उससे लिप्त नहीं होती, बल्कि वही स्वयं उनसे लिप्त होता है । इस तथ्य को समझ लेने के बाद उपरोक्त श्लोक बहुत अच्छी तरह समझ में आ सकता है, और तब वह कर्मों से नहीं बाँधा जाता ।
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’लिम्पन्ति’ / ’limpanti’ - cling to, stick to, bind,
Chapter 4, śloka 14,
na māṃ karmāṇi limpanti
na me karmaphale spṛhā |
iti māṃ yo:'bhijānāti
karmabhirna sa badhyate |
--
(na mām karmāṇi limpanti
na me karmaphale spṛhā |
iti mām yo abhijānāti
karmabhiḥ na saḥ badhyate ||)
--
Meaning :
The actions neither cling me, nor the urge possesses me. One who understands this about me (oneself) well, is never bound by the actions.
--
Note :
It is easy to see that one clings to certain actions that one feels important because of fear, hope, compulsion, and actions / feelings themselves never cling to the mind of man. Knowing this, one can have a better grasp of the fact : 'I am ever so unattached and unaffected by action, and in no way hope to gain anything from them. I am in no way bound by them.'
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’लिम्पन्ति’ / ’limpanti’ - लिप्त होते हैं, लिप्त करते हैं,
अध्याय 4, श्लोक 14,
न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा ।
इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते ।
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(न माम् कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा ।
इति माम् यो अभिजानाति कर्मभिः न सः बध्यते ॥)
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भावार्थ :
न तो कर्म मुझसे लिप्त होते हैं, न मुझको लिप्त करते हैं, और न कर्मफलों से मुझे कोई आशा है, इस प्रकार से जो मुझे (अपने-आपको) सम्यक् रूपेण जान-समझ लेता है, वह कर्मों के द्वारा नहीं बाँधा जाता ।
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टिप्पणी :
’कर्म मुझसे लिप्त नहीं होते, न मुझको लिप्त करते हैं’, का तात्पर्य यह है कि चूँकि वे मुझे स्पर्श तक नहीं करते इसलिए मुझसे उनका लिप्त होना संभव ही नहीं । और मनुष्य वैसे भी जानता है कि वह किस कर्म या भावना से लिप्त है, और किस कर्म या भावना से लिप्त नहीं है । अर्थात् कोई विशिष्ट कर्म और भावनाएँ ही (जिनसे उसका कर्तृत्व या भोक्तृत्व भाव जुड़ा होता है) ऐसी होती हैं, जिनसे वह अपने-आपको लिप्त अनुभव करता है । दूसरे शब्दों में उसे यह अच्छी तरह से पता होता है कि कर्म या भावनाएँ उससे लिप्त नहीं होती, बल्कि वही स्वयं उनसे लिप्त होता है । इस तथ्य को समझ लेने के बाद उपरोक्त श्लोक बहुत अच्छी तरह समझ में आ सकता है, और तब वह कर्मों से नहीं बाँधा जाता ।
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’लिम्पन्ति’ / ’limpanti’ - cling to, stick to, bind,
Chapter 4, śloka 14,
na māṃ karmāṇi limpanti
na me karmaphale spṛhā |
iti māṃ yo:'bhijānāti
karmabhirna sa badhyate |
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(na mām karmāṇi limpanti
na me karmaphale spṛhā |
iti mām yo abhijānāti
karmabhiḥ na saḥ badhyate ||)
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Meaning :
The actions neither cling me, nor the urge possesses me. One who understands this about me (oneself) well, is never bound by the actions.
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Note :
It is easy to see that one clings to certain actions that one feels important because of fear, hope, compulsion, and actions / feelings themselves never cling to the mind of man. Knowing this, one can have a better grasp of the fact : 'I am ever so unattached and unaffected by action, and in no way hope to gain anything from them. I am in no way bound by them.'
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