Tuesday, September 2, 2014

आज का श्लोक, ’विकारान्’ / ’vikārān’

आज का श्लोक, ’विकारान्’ / ’vikārān’
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’विकारान्’ / ’vikārān’ - विकारों को, (व्यक्त जगत् में चल रही परिवर्तन की प्रक्रिया से फलित प्रभावों को),

अध्याय 13, श्लोक 19,

प्रकृतिं पुरुषं चैव विद्ध्यनादी उभावपि ।
विकारांश्च गुणांश्चैव विद्धि प्रकृतिसम्भवान् ॥
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(प्रकृतिम् पुरुषम् च एव विद्धि अनादी उभौ अपि ।
विकारान् च गुणान् च एव विद्धि प्रकृतिसम्भवान् ॥)
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भावार्थ :
प्रकृति तथा पुरुष, इन दोनों को ही अनादि जानो, और विकारों तथा गुणों की उत्पत्ति प्रकृति से ही होती है, यह भी जानो ।
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’विकारान्’ / ’vikārān’  - deformations / modifications / mutations / transformations,

Chapter 13, śloka 19,

prakṛtiṃ puruṣaṃ caiva
viddhyanādī ubhāvapi |
vikārāṃśca guṇāṃścaiva
viddhi prakṛtisambhavān ||
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(prakṛtim puruṣam ca eva
viddhi anādī ubhau api |
vikārān ca guṇān ca eva
viddhi prakṛtisambhavān ||)
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Meaning :
Know that both the manifestation (prakṛti) and the consciousness (puruṣa) are beginingless, while deformations / mutations (vikāra) and attributes (guṇa) are born of manifestation (prakṛti) only.
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