आज का श्लोक, ’विगतभीः’ / ’vigatabhīḥ’
_____________________________
’विगतभीः’ / ’vigatabhīḥ’ - भयरहित,
अध्याय 6, श्लोक 14,
प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थितः ।
मनः संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः ॥
--
(प्रशान्तात्मा विगतभीः ब्रह्मचारिव्रते स्थितः ।
मनः संयम्य मच्चित्तः युक्तः आसीत मत्परः ॥)
--
भावार्थ :
जिसकी वृत्तियाँ शान्त हों, जो भयरहित हो, ब्रह्मचर्य के व्रत में स्थित हो, मन को बाह्य विषयों में जाने से रोककर मुझमें संलग्नचित्त होकर मेरे परायण होकर मुझमें
निमग्न रहे ।
--
’विगतभीः’ / ’vigatabhīḥ’ - fearless, free from fear,
Chapter 6, śloka 14,
praśāntātmā vigatabhīr-
brahmacārivrate sthitaḥ |
manaḥ saṃyamya maccitto
yukta āsīta matparaḥ ||
--
(praśāntātmā vigatabhīḥ
brahmacārivrate sthitaḥ |
manaḥ saṃyamya maccittaḥ
yuktaḥ āsīta matparaḥ ||)
--
Meaning :
One who has all the vRtti -s / (various modes of the mind) pacified, subsided, and thus has quiet in mind, who has no fear, one who dwells in the contemplation of 'Brahman', who is free from the complexities and obtuseness of mind, and thus has spontaneous control over the mind, who is devoted and absorbed in 'Me', One so having attained 'Me', ...
--
_____________________________
’विगतभीः’ / ’vigatabhīḥ’ - भयरहित,
अध्याय 6, श्लोक 14,
प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थितः ।
मनः संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः ॥
--
(प्रशान्तात्मा विगतभीः ब्रह्मचारिव्रते स्थितः ।
मनः संयम्य मच्चित्तः युक्तः आसीत मत्परः ॥)
--
भावार्थ :
जिसकी वृत्तियाँ शान्त हों, जो भयरहित हो, ब्रह्मचर्य के व्रत में स्थित हो, मन को बाह्य विषयों में जाने से रोककर मुझमें संलग्नचित्त होकर मेरे परायण होकर मुझमें
निमग्न रहे ।
--
’विगतभीः’ / ’vigatabhīḥ’ - fearless, free from fear,
Chapter 6, śloka 14,
praśāntātmā vigatabhīr-
brahmacārivrate sthitaḥ |
manaḥ saṃyamya maccitto
yukta āsīta matparaḥ ||
--
(praśāntātmā vigatabhīḥ
brahmacārivrate sthitaḥ |
manaḥ saṃyamya maccittaḥ
yuktaḥ āsīta matparaḥ ||)
--
Meaning :
One who has all the vRtti -s / (various modes of the mind) pacified, subsided, and thus has quiet in mind, who has no fear, one who dwells in the contemplation of 'Brahman', who is free from the complexities and obtuseness of mind, and thus has spontaneous control over the mind, who is devoted and absorbed in 'Me', One so having attained 'Me', ...
--
No comments:
Post a Comment