Tuesday, September 2, 2014

आज का श्लोक, ’विगतज्वरः’ / ’vigatajvaraḥ’

आज का श्लोक,  ’विगतज्वरः’ / ’vigatajvaraḥ’
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 ’विगतज्वरः’ / ’vigatajvaraḥ’  - संताप / उद्विग्नता से मुक्त रहकर,
  
अध्याय 3, श्लोक 30,

मयि सर्वाणि कर्माणि सन्न्यस्यध्यात्मचेतसा ।
निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः
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(मयि सर्वाणि कर्माणि सन्न्यस्य-अध्यात्म-चेतसा ।
निराशीः निर्ममः भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः ॥)
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भावार्थ :
समस्त कर्मों को अध्यात्मबुद्धिपूर्वक मुझमें अर्पित करते हुए, आशा से और ममता से रहित होकर, संताप से मुक्त रहते हुए युद्ध करो ।
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’विगतज्वरः’ / ’vigatajvaraḥ’ - free from agony,

Chapter 3, śloka 30,

mayi sarvāṇi karmāṇi
sannyasyadhyātmacetasā |
nirāśīrnirmamo bhūtvā
yudhyasva vigatajvaraḥ ||
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(mayi sarvāṇi karmāṇi
sannyasya-adhyātma-cetasā |
nirāśīḥ nirmamaḥ bhūtvā
yudhyasva vigatajvaraḥ ||)
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Meaning : With the conviction born of the mind aimed at the spiritual, having surrendered all your actions in Me, fight the war without hoping, without attachment, and with the mind free of agony.
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