Sunday, July 6, 2014

आज का श्लोक, ’समारंभाः’ / ’samāraṃbhāḥ’

आज का श्लोक,
’समारंभाः’ / ’samāraṃbhāḥ’ 
_________________________

’समारंभाः’ / ’samāraṃbhāḥ’ - कर्म, लक्ष्य-प्रेरित कार्य,

अध्याय 4, श्लोक 19,

यस्य सर्वे समारंभाः कामसङ्कल्पवर्जिताः ।
ज्ञानाग्निदग्धकर्माणः तमाहुः पण्डितम् बुधाः ॥
--
(यस्य सर्वे समारम्भाः कामसङ्कल्पवर्जिताः ।
ज्ञानाग्निदग्ध-कर्माणः तम् आहुः पण्डितम् बुधाः ॥)
--
भावार्थ :
जिसके सम्पूर्ण कर्म ज्ञान की अग्नि में दग्ध हो चुके हैं और इसलिए कामना तथा संकल्प से प्रेरित होकर नहीं, बल्कि अनुष्ठेय कर्तव्य मात्र होने से होते हैं, ज्ञानीजन उसे पण्डित कहते हैं ।
--
’समारंभाः’ / ’samāraṃbhāḥ’ - actions / objective-oriented activities,

Chapter 4, śloka 19,

yasya sarve samāraṃbhāḥ 
kāmasaṅkalpavarjitāḥ |
jñānāgnidagdhakarmāṇaḥ
tamāhuḥ paṇḍitam budhāḥ ||
--
(yasya sarve samārambhāḥ 
kāmasaṅkalpavarjitāḥ |
jñānāgnidagdha-karmāṇaḥ
tam āhuḥ paṇḍitam budhāḥ ||)
--
One, whose all actions (karma) have been burnt-down in the fire of intelligence, though performs them with without being prompted by desire or determination, because they have been ordained by scriptures / destiny, is called truly a wise one, even by the seers.
--

No comments:

Post a Comment