Saturday, July 12, 2014

आज का श्लोक, ’सद्भावे’ / ’sadbhāve’

आज का श्लोक,
’सद्भावे’ / ’sadbhāve’ 
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’सद्भावे’ / ’sadbhāve’ - कल्याण की भावना तथा उद्देश्य की शुद्धता और निर्मलता के संबंध में,

अध्याय 17, श्लोक 26,

सद्भावे साधुभावे च सदित्येतत्प्रयुज्यते ।
प्रशस्ते कर्मणि तथा सच्छब्दः पार्थ युज्यते ॥
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(सद्भावे साधुभावे च सत्-इति-एतत्-प्रयुज्यते ।
प्रशस्ते कर्मणि तथा सच्छब्दः पार्थ युज्यते ॥)
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भावार्थ :’सत्’ (परमात्मा के इस नाम का) प्रयोग सत्यभाव में (सत्यता की भावना सहित) और श्रेष्ठता के तात्पर्य में किया जाता है । इसी प्रकार कर्म की उत्तमता के सूचक के रूप में भी इसका व्यवहार होता है ।
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’सद्भावे’ / ’sadbhāve’ - regarding the sense of purity of intention and purpose,

Chapter 17, śloka 26,

sadbhāve sādhubhāve ca
 sadityetatprayujyate |
praśaste karmaṇi tathā
sacchabdaḥ pārtha yujyate ||
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(sadbhāve sādhubhāve ca
sat-iti-etat-prayujyate |
praśaste karmaṇi tathā
sacchabdaḥ pārtha yujyate ||)
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Meaning :
O parth (arjuna)! the word 'sat'(essence) is applied to express the Reality, and also the earnestness, sincerity, auspiciousness, and the purity of the purpose. Therefore this word 'sat' is used to remind all those aspects of Truth. This word 'sat' is again used to denote the goodness and virtue of the way a noble deed is performed.
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