Thursday, July 3, 2014

आज का श्लोक, ’सर्वम्’ / ’sarvam’

आज का श्लोक,  ’सर्वम्’ / ’sarvam’
___________________________

’सर्वम्’ / ’sarvam’ - सब, सर्व,

अध्याय 11, श्लोक 40,

नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व ।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ॥
--
(नमः पुरस्तात् अथ पृष्ठतः ते नमः अस्तु ते सर्वतः एव सर्व ।
अनन्तवीर्य अमितविक्रमः त्वम् सर्वम् समाप्नोषि ततः असि सर्वः ॥)
--
भावार्थ :
हे अनन्तसामर्थ्यवान् ! आपको आगे से तथा पीछे से भी नमस्कार । आपके लिए सब ओर से ही प्रणाम हो, हे सर्वस्व ! हे अनन्त पराक्रमशाली आप सम्पूर्ण संसार को व्याप्त किए हुए हैं, इसलिए आप ही सर्वरूप, सब-कुछ हैं ।
--
टिप्पणी : उपरोक्त श्लोक में पहले आधे भाग में ’सर्व’ पद का प्रयोग संबोधनवाची है, -’हे सर्व!’ के अर्थ में ।
--
’सर्वम्’ / ’sarvam’  - All. Whole, Everything,

Chapter 11, śloka 40,

namaḥ purastādatha pṛṣṭhataste
namo:'stu te sarvata eva sarva |
anantavīryāmitavikramastvaṃ
sarvaṃ samāpnoṣi tato:'si sarvaḥ ||
--
namaḥ purastāt atha pṛṣṭhataḥ te
namaḥ astu te sarvataḥ eva sarva |
anantavīrya amitavikramaḥ tvam
sarvam samāpnoṣi tataḥ asi sarvaḥ ||
--
Meaning :
Obeisance to You from the front, Obeisance to You from the back, obeisance to You from all the sides. You are Omnipresent, and All. O Supreme! You are valor infinite and strength infallible! You pervade All, ...You Are All!!
--

No comments:

Post a Comment