Saturday, August 9, 2014

आज का श्लोक, ’विहारशय्यासनभोजनेषु’ / ’vihāraśayyāsanabhojaneṣu’

आज का श्लोक,
’विहारशय्यासनभोजनेषु’ / ’vihāraśayyāsanabhojaneṣu’
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’विहारशय्यासनभोजनेषु’ / ’vihāraśayyāsanabhojaneṣu’ - खेल-खेल में, आपके शयन के अथवा आपके भोजन आदि के समय,

अध्याय 11, श्लोक 42,

यच्चावहासार्थमसत्कृतोऽसि
विहारशय्यासनभोजनेषु
एकोऽथवाप्यच्युत तत्समक्षं
तत्क्षामये त्वामहमप्रमेयम् ॥
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(यत् च अवहासार्थम् असत्कृतः असि
विहारशय्यासनभोजनेषु
एकः अथवा अपि अच्युत तत् समक्षम्
तत्-क्षामये त्वाम् अहम् अप्रमेयम् ॥)
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भावार्थ :
आपको सखा मानकर, आपका जो भी परिहास मेरे द्वारा आपसे खेल-खेल में, आपके शय्या के अथवा भोजन आदि के समय, किसी एक या बहुत से  सखाओं आदि के सामने किया गया, हे अच्युत (हे कृष्ण)! उन सबके लिए मैं आपसे क्षमा याचना करता हूँ ।
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’विहारशय्यासनभोजनेषु’ / ’vihāraśayyāsanabhojaneṣu’ - during the play, or the time when you were resting or taking meals,

Chapter 11, śloka 42,

yaccāvahāsārthamasatkṛto:'si
vihāraśayyāsanabhojaneṣu |
eko:'thavāpyacyuta tatsamakṣaṃ
tatkṣāmaye tvāmahamaprameyam ||
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(yat ca avahāsārtham asat kṛtaḥ asi
vihāra-śayyā-āsana-bhojaneṣu |
ekaḥ athavā api acyuta tat samakṣam
tat-kṣāmaye tvām aham aprameyam ||)
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Just out of fun, while in play, at rest, while seated or while dining, before one or many others, whatever disrespect I have done to you, O acyuta! kṛṣṇa! I beg Your forgiveness,
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